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________________ ७८६ प्रधापनास्त्र वा, संख्येयभागहीनो वा, संख्येयगुणहीनो वा, असंख्येयगुणहीनो बा, अथाभ्यधिकः असंख्येयभागाभ्यधिको वा, संख्येयभागाभ्यधिको वा, संख्येयगुणाभ्यधिको वा, असंख्येयगुणाभ्यधिको वा, कृष्णवर्णपर्यवैः स्याद्धीनः, स्यात्तुल्यः, स्यादभ्यधिकः, यदा हीनः अनन्तभागहीनो बा, असंख्येयभागहीनो वा, संख्येय भाग हीनो वा, संख्येयगुणहीनो वा, असंख्येयगुणहीनो वा, अनन्तगुणहीनो वा, अथाभ्यधिकः अनन्तभागाभ्यधिको वा, असंख्येयभागाभ्यधिको वा, संखेज्जइगुणहीणे वा असंखेज्जइगुणहीणे वा .) असंख्यातभागहीन संख्यातभाग हीन संख्यातगुण हीन या असंख्यातगुण हीन होता है (अहअभिहिए) अगर अधिक हो (असंखेज्जडभाग अमहिए वा, संखेज्जइभागअभहिए वा, संखेज्जइगुणअहिए वा, असंखेजहगुणअन्भहिए वा) असंख्यातभाग अधिक संख्यातभाग अधिक, संख्यात गुण अधिक असंख्यातगुण अधिक, होता है। (कालवण्णपज्जवेहिं सिय हीणे, सिय तुल्ले, सिय अभहिए) कृष्ण वर्ण के पर्यायों से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य, कदाचित् अधिक होता है (जइ हीणे अणंतभागहीणे वा, असंखेजइभागहीणे वा संखेजहभाग हीणे वा, संखेजइगुणहीणे वा, असंखेजइगुणहीणे वा, अणंतगुणहीणे वा) यदि हीन हो तो अनन्तभागहीन असंख्यातभाग हीन संख्यातभाग हीन, संख्यातगुण हीन, असंख्यातगुणहीन अथर अनन्तगुणहीन होता है (अह अभहिए अणंतभागअन्भहिए वा, असंखेजइभाग अन्भहिए वा, संखेजड्भागअन्भहिए वा, संखेज्जइगुणअन्भहिए वा, असंखेज्जइ. असंखेजइ गुण हीणे वा) मस च्यात माडीन, सध्यात सापडीन, सभ्यात गुर डीन या मसभ्यात गुगुडान थाय छ (अह अन्भहिए) भग२ मधि डाय छ त। (असंखेज्जइभागअब्भहिए वा, संखेज्जइभाग अभहिर वा, संखेजइ गुण अन्भहिए वा, असंखेज्जइ गुण अन्भहिए वा) २५सण्यात मा मधिर, સંખ્યાત ભાગ અધિક, સ ખ્યાત ગુણ અધિક, અસ ખ્યાત ગુણ અધિક થાય છે (कालवण्णपज्जवेहिं सिय हीणे, सिय तुल्ले, सिय अन्भहिए) पृष् ना पर्यायाथी ४ायित् डीन. ४ाथित् तुल्य, आथित अधि: थाय छे (जइ होणे अणतभाग हीणे वा, असंखेज्जइ भागहीणे वा, संखेज्जइ भागहीणे वा. संखेज्जइ गुणहीणेवा, असंखेज्जइगुणहीणे वा, अणत गुणहीणे वा) ले डीन डाय तो અનન્ત ભાગહીન, અસ ખ્યાત ભાગહીન, સંખ્યાત ભાગહીન, સંખ્યાત ગુણ डीन, मसभ्यात गुगुडीन अथवा मनन्त गुडान थाय छे (अह अन्भहिए अणंतभाग अन्भहिए वा, असंखेज्जइ भाग अन्भहिए वा सखेज्जइ भाग अन्भ
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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