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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ सू.०१३ परमाणु पुद्गलपर्यायनिरूपणम् ७८५ स्स वत्तव्वया भणिया तहा सेसाण वि वाणगंधरसफासाणं वत्तव्वया भाणियव्वा, जाव अणंतगुणलुक्खे ॥लू० १३॥ छाया--परमाणु पुद्गलानां भदन्त ! कियन्तः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! परमाणु पुद्गलानाम् अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थन भदन्त ! एवमुच्यते -परमाणुपुद्गलानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! परमाणुपुद्गलः परमाणु पुद्गलस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशातया तुल्यः, अवगाहनार्थतया तुल्यः, स्थित्या स्याद्धीनः, स्यात्तुल्यः, स्यादभ्यधिकः, यदा हीनः असंख्येयभागहीनो परमाणुपुद्गलपर्यायवक्यता शब्दार्थ-(परमाणुपोग्गलाणं भते ! केवझ्या पज्जवा पण्णत्ता?) हे भगवन परमाणुपुद्गलों के कितने पर्याय कहे हैं ? (गोयमा ! परमाणुपोग्गलाणं अणता पज्जा पण्णत्ता) हे गौतम ! परमाणुपुद्गलों के के अनन्त पर्याध कहे हैं (से केणट्टेणं भंते ! एच बुच्चइ परमाणुपोग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता) किस कारण से हे भगवन् ! ऐसा कहा है कि परमाणुपुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (परमा गुपोग्गले परमाणुपोगलस्स दवट्टयाए तुल्ले) एक परमाणुगुद्गल दूसरे परमाणुपुद्गल से द्रव्य की दृष्टि से तुल्य है (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशों की दृष्टि से तुल्य है (ओगाहणट्टयाए तुल्ले) अवगाहना की दृष्टि से तुल्य है (ठिईए लिय होणे सिय तुल्ले सिय अनिहिए) स्थिति की दृष्टि से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य, कदाचित् अधिक है (जइ हीणे) यदि हीन हो (असंखेज्जइभागहीणे वा संखेज्जइभागहीणे वा, પરમાણુ પુગલ પર્યાય વકતવ્યતા शहाथ-(परमाणुपोग्गलाणं भंते । केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?) भगवन् । ५२मा पुराना टसा पर्याय zu छ १ (गोयमा । परमाणुपोग्गलाणं अणता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम । ५२मा पुगसाना मनन्त पर्याय छ (से केणट्रेणं भते । एवं वुच्चइ-परमाणुपोग्गलाणं अणता पज्जवा पण्णत्ता) शा કારણે હે ભગવદ્ ' એવું કહ્યું છે કે પરમાણુ પુદગલેના અનન્ત પર્યાય છે? (गोयमा ।) है गौतम । (परमाणुपोग्गले परमाणुपोगलस्म दबट्याए तुल्ले) એક પરમાણુ યુગલ બીજ પરમાણુ પુદ્ગલથી દ્રવ્યની દૃષ્ટિએ તુલ્ય છે. (पासट्याग तुल्ले) प्रशानी से तुल्य छ (ओगाहणट्रयाग तुल्ले) भगा. नानी ष्टि तुक्ष्य छ (ठिई। सिय हीगे सिय नुल्ले सिय अन्भहिग) स्थितिनी लिटरी ४ायित् हीन, आथित् तुक्ष्य आथित् मथि छे (जड होणे) ने डीन डाय (असंखेज्जाभाग हीणे या, संखेजहभाग हीणे वा, संखजइ गुण होणे वा १० ९९
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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