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________________ ७५३ प्रज्ञापनास्त्र अपि मनुष्यो भणितव्यः, वानव्यन्तराः यथा असुरकुमाराः, एवं ज्योतिष्क वैमानिकाः, नवरं स्वस्थाने स्थित्या त्रिस्थानपतितो अणितव्यः, ते एते जीवपर्यवाः । टीका-अथ जघन्यायवगाहनकादीनां मनुष्याणां पर्यायान् प्ररूपयितुमाह --'जहण्णोगाहणगाणं भंते ! मणुस्साणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?' गौतमः पृच्छति-हेभदन्त ! जघन्यावगाहनकानां-जघन्यम्-अवगाहनं शरीरोच्छ्रयो येपां ते जघन्यावगाइनकास्तेषां मनुष्याणां कियन्तः पर्यायाः प्रज्ञप्ता ? भगवान् उत्तरयति-"गोयमा !' हे गौतम ! 'अणंता पज्जवा पण्णत्ता' जघन्यावगाहनकानां मनुष्याणाम् अनन्ताः पर्यवा प्रज्ञप्ताः, गौतमः पृच्छति-'से केणटेणं भंते ! एवं केवज्ञान और केवलदर्शन के पर्याथों तुल्य है (एवं केवलदसणी वि मसेभाणियब्वे) इसी प्रकार केवलदर्शनी भी मनुष्य कहना चाहिए (वाणमंतरा जहा अस्सुरकुमारा) वानव्यन्तर असुरकुमारों के समान (एवं जोइसियवेमाणिया) इसी प्रकार ज्योतिष्क और वैमानिक नवरं) विशेष (सहाणे ठिईए तिट्ठाणवडिए) स्वस्थान में स्थिति से त्रिस्थानपतित (माणियब्वे) कइना चाहिए (से त्तं जीवपज्जवा) जीवपर्यायों का निरूपण समाप्त टीकार्थ-अब जघन्य आदि अवगाहना वाले मनुष्यों का निरूपण किया जाता है- गौतम प्रश्न करते हैं-हे भगवत् ! जघन्य अवगाहना अर्थात् शरीर की उंचाई वाले मनुष्यों के कितने पर्याय हैं ? ___ भगवान् उत्तर देते हैं-हे गौतम ! जघन्य अवगाहना वाले मनुष्यों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं। केवलदसणपज्जवेहिं तुल्ले) ज्ञान भने व शनना पर्यायाथी तुस्य छ (एवं केवलदसणी वि मणूसे भाणियव्वे) मे ४ारे व शनी मनुष्य ५५] ४ नये (वाणमंतरा जहा असुरकुमारा) वानव्य त२-मसुरशुभाराना समान (एवं जोइसियवेमाणिया) ज्योति मन वैमानि (नवर) विशेष (सटाणे ठिईए तिढाणवडिए) २५स्थानमा स्थितिथी विस्थान पतित (भाणियब्वे) ४३ नये (सत्तं जीवपज्जवा) २मा प्रारे ७१ पर्यायानु नि३५ ४८ छे. ટીકાઈ– હવે જઘન્ય આદિ અવગાહનાવાળા મનુષ્યોનું નિરૂપણ કરાય છે * શ્રીગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે-હે ભગવન્! જઘન્ય અવગાહનાવાળા અર્થાત શરીરની ઊંચાઈવાળા મનુષ્યના કેટલા પર્યાય છે? ' श्री भगवान् उत्त२ मा छ-3 गौतम! धन्य मानावा मनु- ના અનન્ત પર્યાય કહેલા છે.
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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