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प्रशॉपनाने नवरस् अवगाहनार्थतया त्रिस्थानपतितः, यथा आमिनिवोधिकज्ञानी तथा मत्यज्ञानी श्रुताज्ञानी अपि भणितव्यः, यथा अवधिज्ञानी तथा विभङ्गज्ञानी अपि भणितव्यः, चक्षुर्दर्शनी अचक्षुर्देर्शनी च यथा आभिनिवोधिकज्ञानी, अवधिदर्शनी यथा अवधिज्ञानी यत्र ज्ञानानि तत्र अज्ञानानि न सन्ति, यत्र अज्ञानानि तत्र ज्ञानानि न सन्ति, यत्र दर्शनानि तत्र ज्ञानान्यपि अज्ञानान्यपि, केवलज्ञानिनां भदन्त ! मनुष्याणां एवं चेव) मध्यस अवधिज्ञानी इसी प्रकार (नवरं ओगाहणट्टयाए चउठाणवडिए) विशेष यह कि अवगाहना से चतुःस्थानपतित है (सहाणे छट्ठाणवडिए) स्वस्थान में षटूस्थानपतित है
(जहा ओहिनाणी तहा अणपज्जवनाणी वि भाणियव्वे) जैसा अवधिज्ञानी वैसा ही मनःपर्यवज्ञानी भी कहना चाहिए (नवरं ओगाहणट्टयाए तिहाणवडिए) विशेषता यह कि अवगाहना से त्रिस्थानपतित है (जहा आभिणिबोहियनाणी तहा मइअण्णाणी सुय. अण्णाणी वि भाणियव्ये) मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी आभिनिबोघिकज्ञनी के समान कहना चाहिए (जहा औहिनाणी तहा विभगनाणी वि भाणियब्वे) जैसे अवधिज्ञानी वैसे ही विभ'गज्ञानी भी कहना चाहिए (चक्खुदसणी अचखुद सणी य जहा आभिणिबोहियनाणी) चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी आभिनियोधिकज्ञानी के समान (ओहिदंसणी जहा ओहिनाणी) अबधिदर्शनी अवधिज्ञानी के समान (जत्थ नाणा तत्थ अण्णाणा नत्थि) जहां शानी ५y (अजहण्णमणुकोसोहिनाणी एवं चेव) मध्यम अवधिज्ञानी थे. ५४१२ (नवर ओगाहणठ्ठयाए चउढाणवडिए) विशेष से छे , मानाथी यतुःस्थान पतित छ (सठ्ठाणे छट्ठाणवडिर) स्वस्थानमा घटस्थान पतित छ
(जहा ओहिनाणी तहा मणपज्जवनाणी वि भाणियव्वे) २१ मधिज्ञानी तवार भन:५य ज्ञानी ५५५ ४१ नये. (नवरं ओगाहणद्वयाए तिद्वाणवडिए) विशेष अगाडनाथ त्रिस्थान पतित छे (जहा आभिणिबोहियनाणी तहा मइ. अण्णाणी सुयअण्णाणी वि भाणियव्वे) मत्यज्ञानी मने श्रुताज्ञानी मानिनिमाधि ज्ञानीना समान वान (जहा ओहिनाणी तहा विभंगनाणी वि भाणियव्वे) २वा अवधिज्ञानी तेवा विम ज्ञानी ४ा नये. (चक्खुदसणी अचक्खुसणी य जहा आभिणिबोहियनाणी) यक्षुशनी मने अनुशनी मालिनिमाधिज्ञानीना समान (ओहिदसणी जहा ओहिनाणी) मधिशनी अवधिज्ञानी समान (जत्थ नाणा तत्थ अण्णोणा नस्थि) या ज्ञान छे त्या महान नथी