________________
७४४
प्रतापनासूत्रे
मनुष्यः जघन्यस्थितिकस्य मनुष्यस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया तुल्यः अवगाहनार्थतया चतुःस्थानपतितः, रिवत्या तुल्यः, वर्णगन्धरसस्पर्श पर्यवः द्वाभ्यामज्ञानाभ्यां द्वाभ्यां दर्शनाभ्यां पदस्थानपतितः, एवम् उत्कृष्टस्थितिकोऽपि, नवरं द्वे ज्ञाने, द्वे अज्ञाने, द्वे दर्शने, अजवन्यानुत्कृष्टस्थितिकोऽपि एवञ्चैव, नवरं स्थित्या चतुः स्थानपतितः, अवगाहनार्थतया चतु: स्थानपतितः आदिस्मार्ण अनंता पज्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा गया है कि जघन्य स्थितिक मनुष्यों के अनन्त पर्याय कहे गए हैं ? (गोमा !) हे गौतम ! ( जणटिइए मणुस्से) जघन्य स्थिति वाला मनुष्य (जहणटिइन्स्स मणुस्सस्म) जघन्य स्थिति वाले मनुष्य से (वट्ट्याए तुल्ले) द्रग की अपेक्षा तुल्य है (सहयाए तुल्ले) प्रदेशों की अपेक्षा तुल्य है (ओगाहणट्टयाए) अवगाहना से (चाणवढिए) चतुःस्थानपतित है (टिईए तुल्ले) स्थिति से तुल्य है (वण्णगंधरसफासपज्जवेहिं) वर्ण, गंध, रस, स्पर्श के पर्यायों से (दोहि अन्नाणेहिं) दो अज्ञानों से (दोहिं दंसणेहिं) दो दर्शनों से (छाणवडिए) षट्स्थागपतित है ( एवं उनकोसटिए वि) इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाला भी (नवरं) विशेष (दो नाणा) दो ज्ञान (दो अन्गणा) दो अज्ञान (दो दंसणा ) दो दर्शन कहना चाहिए
(अजणनकोटिड वि एवं देव) मध्यमस्थिनिक भी इसी प्रकार (नवरं ) विशेष (टिइए चउडाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित (ओगाहण्याए चउडाणवडिए) अवगाहना से चतुःस्थानठिइयाणं मणुत्साणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता १) हे भगवन् शा अवु
धन्य स्थिति भनुष्योना नन्न पर्याय ह्या छे ? (गोयमा ) हे गौतम । (जहण्ण ठिईए मगुस्से) ४धन्य स्थितित्राणा मनुष्य (जहण ईयस्स मणुस्सम्स)
धन्य स्थितिवाणा मनुष्याधी (दच्वटुचाए तुल्ले) द्रव्यनी अपेक्षा तुझ्यछे ( प सट्टयाए तुल्ले) प्रदेशोनी अपेक्षा तुझ्य छे (ओगाहणट्टयाए) अवगाहनाधी (चउडाणवडिए) यतु स्थान पतित छे (ठिईए तुल्ले) स्थितिथी तुझ्य छे (वण्ण गंध रस फास पज्जवेहिं) वर्षा गंध रस स्पर्शना पर्यायाथी (दोहिं अन्नाणेहिं) मे अज्ञानाथी (दोहि दंसणेहि ) मे दर्शनाथी (छट्टाण डिए) पटस्थान पतित छे (एवं उनोसठिइए वि) मेन अक्षरे उष्ट स्थितिवाणा पशु (नवर ) विशेष (ढो नाणा ) मे ज्ञान (दो अन्नाणा) मे अज्ञान (दो दंसणा ) मे दर्शन उडेना लेि (अजहणमणुक्तोस ठिईए वि एवं चेव ) मध्यभ स्थिति वाजा पशु सेन रीते सभवा (नवर) विशेष (ठिईए चउट्टाणवडिए) स्थितिथी अतुःस्थान पतित