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________________ aratfart टीका पद ५ सु. ११ मनुष्यपर्यायनिरूपणम् ७४३ , दर्शने, अजघन्यानुत्कृष्टावगाहनकोऽपि एवञ्चैव, नवरम् अवगाहनार्थतया चतुः स्थानपतितः, स्थित्या चतुःस्थानपतितः, आदिमैश्चतुभिर्ज्ञानैः पदस्थानपतितः, केवलज्ञानपर्यवैस्तुल्यः, त्रिभिरज्ञानैः, त्रिभिर्दर्शनैः पद्स्थानपतितः केवलदर्शनपर्यवैस्तुल्यः, जघन्यस्थितिकानां भदन्त ! मनुष्याणां कियन्तः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते - जघन्य - स्थितिकानां मनुष्याणामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जयन्यस्थितिको हीणे) असंख्यात भाग हीन (अह अम्भहिए) अगर अधिक है (असंखेज्जइभागअन्भहिए ) असंख्यात भाग अधिक है (दो नाणा) उसमें दो ज्ञान (दो अन्नाणा) दो अज्ञान (दो दंसणा ) दो दर्शन (अजह uraणुक्को सोगाहणए वि एवं चेव) मध्यम अवगाहना वाला भी इसी प्रकार (नवरं ओगाहणडयाए चउट्ठाणवडिए) विशेष यह कि अवगाहना से चतुःस्थानपतित है (टिईए चट्टानडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित है ( आइल्लेहिं चउहि नाणेहिं) आदि के चार ज्ञानों से ( छाडिए) पदस्थानपतित (केवलनाणपज्जवेहिं तुल्ले) केवल ज्ञान के पर्यायों से तुल्य ( तिहिं अण्णाणेहिं) तीन अज्ञानों से (तिहिं दंसणेहिं) तीन दर्शनों से (छडाणवडिए) पदस्थानपतित है ( केवलदंसणपज्जवेहिं) केवलदर्शन के पर्यायों से (तुल्ले) तुल्य ( जहण्णठियाणं भंते । मणुस्साणं) भगवन् ! जघन्य स्थिति वाले मनुष्यों के (केवइया पज्जवा पण्णत्ता) कितने पर्याय कहे हैं ? ( गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम! अनन्त पर्याय कहे (सेकेणणं भंते! एवं बुच्चइ - जहण्णठिड्याएं मणु छे (असंखिज्जइ भाग अन्भहिए ) असण्यात लाग अधिछे (ढो नाणा) तेभां मे ज्ञान (दो अन्नाणी) में अज्ञान (दो दंसणा ) मे दर्शन (अजण मणुकोसोगा हए एवं चैव ) मध्यम अवगाहनवाजा पशु से प्रारे लगुवा (नवरं ओगाहण या चट्टानव डिए) विशेष भेडे अवगाहुनावाणाथी अतु स्थान पतित छे (टिई चउट्टाणवडि) स्थितिथी यतुस्थान पतित है (आइल्लेहिं चहि नाणेहिं) माहिना यार ज्ञानोथी (छठ्ठाणवडिए) पटस्थान पनित (केवलनाणपज्जवेहिं तुल्ले) ठेवण ज्ञानना पर्यायाथी तुझ्य (तिहि अण्णाणेहिं) त्र अज्ञानाथी (तिहि दंसणेहिं) भए, दर्शनाथी (हट्टाणवडिए) पटस्थान पतित छे (केरलसणपज्ञवेहि) देव दर्शनना पर्यायाथी (तुल्ले) तुझ्य (जहण्णठियाणं भंते । मगुस्साणं) से लगवन् ! धन्य स्थितिवाला मनुष्योना (केवइया पज्जवा पण्णत्ता) डेटा पर्याय उद्या हे ? (गोचमा । अनंत । पन्जा पण्णत्ता) हे गौतम अनन्त पर्याय ह्या छे ( से केणट्टेणं मते । एवं बुच्चइ-जण्ण
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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