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प्रक्षापनास्त्र अवधिज्ञानी तथा विभङ्गज्ञानी अपि, चक्षुर्दर्शनी, अचक्षुर्दर्शनी च यथा आभिनिवोधिकज्ञानी, अवधिदर्शनी, यथा अवधिज्ञानी, यत्र ज्ञानानि, वत्र अज्ञानि न सन्ति, यत्र अज्ञानानि तत्र ज्ञानानि न सन्ति, यत्र दर्शनानि तत्र ज्ञानान्यपि अज्ञानान्यपि सन्तीन्ति भणितव्यम् ।। ___टीका-अथ जघन्यायवगाहनकानां पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पर्यवान् प्ररूपयितुमाह-'जहणोगाहणगाणं भंते ! पंनिदियतिरिवखजीणियाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! जघन्यावगाहनकानां-जघन्यम् जैसी आभिनिवोधिकज्ञानी की वक्तव्यता वैसी ही मत्यज्ञानी
और श्रुताज्ञानी की (जहा ओहिनाणी तहा विभंगनाणी वि) जैसी अवधिज्ञानी की वक्तव्यता वैसी ही विभंगज्ञानी की (चक्दसणी अचखुदंणी जहा आभिणियोहियनाणी) चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी आभिनिबोधिकज्ञानी के समान(ओहिदंसणी जहा ओहिनाणी) अवधिदर्शनी अवधिज्ञानी के समान (जत्थ नाणा तत्थ अन्नाणा नत्थि) जहां ज्ञान हैं वहीं अज्ञान नहीं है (जत्थ अण्णाणा तत्थ णाणा नत्थि) जहां अज्ञान हैं वहां ज्ञान नहीं है (जत्थ दंसणा तत्थ णाणा वि अण्णाणा वि अधित्ति भाणियन्त्र) जहां दर्शन हैं वहां ज्ञान भी और अज्ञान भी होते हैं ऐसा कहना चाहिए।
टीकार्थ-अब जघन्य अवगाहनावाले पंचेन्द्रिय तिर्यच जीवों के पर्यायों की प्ररूपणा की जाती है
गौतम प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले पंचेन्द्रिय રીતે આભિનિબોધિકજ્ઞાનીની વક્તવ્યતા તેવીજ રીતે મત્યજ્ઞાની અને શ્રુતજ્ઞાનીની (जहा ओहिनाणी तहा विभंगनाणी वि) रवी मवधिज्ञानीनी तव्यता तवान। विज्ञानानी (चक्खुदसणी अचखुदंसणी जहा आमिणिबोहियनाणी) यक्षु
शनी मन सन्याशनी मानिनिमाधिज्ञानीना समान (ओहिदसणी जहा ओहिनाणी) अवधिशनी मधिज्ञानीना समान (जत्थ णाणा तत्थ अन्नाणा नत्थि) न्य ज्ञान छ त्यो मज्ञान नथी (जत्थ अण्णाणा तत्थ णाणा णत्थि)न्यां मज्ञान छ त्यो ज्ञान नथी (जत्थ दसणा तत्थ णाणा वि अण्णाणा वि अस्थित्ति भाणियव्यं) જયાં દર્શન છે ત્યા જ્ઞાન પણ છે અને અજ્ઞાન પણ હોય છે એવું કહેવું જોઈએ.
ટીકાઈ–હવે જઘન્ય અવગાહનાવાળા પચેન્દ્રિય તિર્યંચ જીવોના પર્યા' योनी प्र३५। ४२राय छ
શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે–હે ભગવન ! જઘન્ય અવગાહનાવાળા પંચે