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________________ ७१८ प्रशापनास्त्रे स्थानपतितः, अजघन्यानुत्कृष्टाभिनिवोधिकज्ञानी यथा उत्कृष्टाभिनिवोधिकज्ञानी, नवरं स्थित्या चतु:स्थानपतितः, स्वस्थाने पट्स्थानपतितः, एवं श्रुतज्ञानी अपि, जघन्यावधिज्ञानिनां भदन्त ! पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-जघन्यावधिज्ञानीनां पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यावधिज्ञानी पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिको जघन्यावधिज्ञानिनः पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकस्य द्रव्यार्थतया स्थानपतित (अजहण्णमणुक्कोसाभिणिवोहियनाणी जहा उक्कोसाभिणिबोहियनाणी) मध्यम आभिनियोधिक ज्ञानी उत्कृष्ट आभिनियो. धिक ज्ञानी के समान (नवरं) विशेष (ठिईए चउठाणवडिए) स्थिति से चतुस्थानपतित (सहाणे छठाणवडिए) स्वस्थान में षट्स्थानपतित (एंव सुयनाणी वि) इसी प्रकार श्रुतज्ञानी भी ___(जहणोहिनाणीणं भंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा) हे भगवन् ! जघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यचों के कितने पर्याय कहे हैं ? (गोयमा ! अणंता पजवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणट्टेणं अंते ! एवं वुचइ-जहण्णोहिनाणीणं पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं अणंता पजवा पण्णता?) किस कारण से हे भगवन् ! ऐसा कहा है कि जघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यचो के अनन्त पर्याय हैं ? (गोयमा !) हे गौतम ! (जहण्णाहिणाणी पंचिंदियतिरिक्खजोणिए जहणोहिनाणिस्स पंचिंदिय तिरिक्खजोणियस्त) जघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यच जघन्य अवधिज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्थच से बोहियनाणी जहा उक्कोसाभिणियोहियणाणी) मध्यम मानिनिमाधिशानी कृष्ट मालिनिमाधि ज्ञानीना समान (नवर) विशेष (ठिईए चठ्ठाणवडिए) स्थितिथी यतु स्थान पतित छे (सट्ठाणे छट्ठाणवडिए) स्वस्थानमा घटस्थान पतित (एवं सुयनाणी वि) से प्रारे श्रुतज्ञानी पर सभा . (जहण्णोहिनाणीणं भंते । पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा) 3 भगवन् ! धन्य विज्ञानी येन्द्रिय तियाना अदा पर्याय ४ा छ ? (गोयमा ! अर्णता पज्जवा पण्णत्ता) डे गौतम | अनन्त पर्याय हा छ (से केणद्वेणं भंते ! एवं वुचइ-जहण्णोहिनाणीणं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता) હે ભગવન શા કારણે એવું કહ્યુ છે કે જઘન્ય અવધિજ્ઞાની પચેન્દ્રિય તિર્યંચોના मनन्त पयिय छ (गोयमा ) 3 गौतम । (जह्मणोहिणाणी पचिदिय तिरिक्खजोणिए जहग्णोहिनाणिस्स पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स) धन्य अवधिज्ञानी पथेन्द्रिय तिय य धन्य अवधिज्ञानी येन्द्रिय तिय यथी (दव्वयाए तुल्ले)
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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