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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ सू.१० पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पर्यायाः ७१७ प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया चतुः स्थानपतितः, स्थित्या चतुः स्थानपतितः वर्णगन्धरसस्पर्शपर्यवैः पट्स्थानपतितः, आभिनियोधिकज्ञानपर्यवेस्तुल्यः, श्रुतज्ञानपर्यवैः पट्स्थानपतितः चक्षुर्दर्शन पर्यवैः पट्स्थानपतितः, अचक्षुर्दर्शनपर्यवः, पट्टस्थानपतितः एवम् उत्कृष्टाभिनिवोधिसज्ञानी अपि, नवरं स्थित्या त्रिस्थानपतितः त्रीणि ज्ञानानि, त्रीणि दर्शनानि स्वस्थाने तुल्यः, शेषेषु पट्ज्ञानी पंचेन्द्रिय तियच दूसरे जघन्य आभिनिबोधिकज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यच से (दवट्टयाए तुल्ले) द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशों से तुल्य है (ओगाहणट्टयाए चउठाणवडिए) अवगाहना से चतुःस्थानपतित (ठिईए चउठाणवडिए) स्थिति से चतुस्थानपतित (वण्णगंधरसफासपजवेहिं छहाणवडिए) वर्ण, गंध, रस, स्पर्श के पर्यायों से षटूस्थानपतित (आभिणियोहियनाणपज्जवेहिं तुल्ले) आभिनियोधिक ज्ञान के पयायों से तुल्य (सुयनाणपज्जवेहि छटाणवडिए) श्रुतज्ञान के पर्यायों से षट्स्थानपतित (चक्खुदंसणपज्जवेहिं छट्ठाणवडिए) चक्षुदर्शन के पर्यायों से षट्स्थानपतित (अचखुदसणपज्जवेहिं छहाणवडिए) अचक्षुदर्शन के पर्यायों से षट्स्थानपतित __(एवं उक्कोसाभिणियोहियनाणी वि) इसी प्रकार उत्कृष्ट आभिनिबोधिक ज्ञानी भी (नवरं) विशेष (ठिईए तिहाणवडिए) स्थिति से त्रिस्थानपतित (तिन्नि नाणा) तीन ज्ञान (निणि दसणा) तीन दर्शन (सहाणे तुल्ले) स्वस्थान में तुल्य (सेसेसु छहाणवडिए) शेप में पट्मी धन्य मामिनिमपि ज्ञानी ५येन्द्रिय तय यथी (दबयाए तुल्ले) द्रव्यनी अपेक्षा तुल्य छ (पासट्याए तुल्ले) प्रशाथी तुझ्य छ (ओगाहणयाए च उट्ठाणवडिए) मगाउनाथी यतु स्थान पतित छ (ठिईए चट्ठाणवडिए) स्थितिथी यतुःस्थान पतित छे (वण्णगंधरसकासपज्जवेहि छट्ठाणवडिर) पशु, गध, २स, २५शना पर्यायाथी पटस्थान पतित छे (आभिणियोहियनाणपज्जवेहि तुल्ले) मामिनिमाधि ज्ञानना पर्यायाथी तुक्ष्य छ (सुचनाणपज्जवेहि छठ्ठाण वडिए) श्रुतज्ञानना पर्यायोथी ५८स्थान पतित छ (चखुदसण पउजवेहि छठीण वडिए) यक्षुशनना पर्यायाथी ५८स्थान पतित (अचक्षुदसणपज्जवेहि छहाण वडिए) मयनुहश नना पायोथी ५८स्थान पतित (एवं उक्कोसा भिणियोहियनाणी वि) मे रे पट मानिनिमाधि शानी ५ (नवर) विशेष (ठिईए तिढाणवडिग) यतिथी स्थान पतित (तिन्नि नाणा) न ज्ञान (तिन्नि दसणा) र ४शन (सहाणे तुल्ले) स्वस्थानमा तुव्य (सेसेसु छटाणवडिए) शेषमा ५८२थान पतित (अजहण्णमणुषोसाभिणि
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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