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________________ ७१६ मापनासूत्रे एवञ्चैव नवरं स्थाने पदस्थानपतितः, एवं पञ्चवर्णाः द्वौ गन्धी, पञ्चरसाः, अष्टौ स्पर्शाः, जघन्याभिनिवोधिकज्ञानिनां भदन्त ! पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां कियन्तः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनायें भदन्त ! एवमुच्यते - जघन्याभिनिवोधिक्ज्ञानिनां पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका नामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्याभिनिवोधिकज्ञानी पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिको जघन्याभिनिवोधिकज्ञानिनः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रकार उत्कृष्टगुण काला भी ( अजहण्णमणुक को सगुणकालए वि एवं चेव) मध्यमगुण काला भी इसी प्रकार (नवरं ) विशेष यह कि (सहाणे छाणवडिए) स्वस्थान में भी पदस्थानपतित है ( एवं पंचवण्णा) इसी प्रकार पांचों वर्ण (दो गंधा) दोनों गंध (पंच रसा) पाचों रस (अट्ठ फासा) आठों स्पर्श (जहण्णाभिणिवोहियनाणीणं भंते! पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् जघन्य अभिनिवोधिक ज्ञानी पंचेन्द्रिय तिर्यचों के कितने पर्याय कहे है ? (गोयमा ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणट्टेर्ण भंते ! एव बुचइ जहण्णाभिणिवोहियनाणीणं तिरिक्खजोणियाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता ? ) किस कारण से हे भगवन् ! ऐसा कहा है कि जघन्य आभिणिबोधिकज्ञानी तिर्थचों के अनन्त पर्याय कहे हैं ? ( गोयमा ! जहण्णाभि णिबोहियनाणी पंचिदियतिरिक खजोणिए जणाभिणिवोहिय णाणिस्स पंचिदियतिरिक्खजोणियस्स हे गौतम ? जघन्य आभिनिवोधिक ४असा भएछु (अजहण्णमगुको सगुणकाल र त्रि एवं चेन) मध्यम गुण आणा पशु सेन अडारे (नवर) विशेष मे छे (सट्टाणे छट्टागवडिर ) स्वस्थानमा पशु पटस्थान पतित छे ( एवं पंच वण्णा) से प्रहारे पाये वर्षा (दो गंधा) में गंध (पंचरसा ) रस (अट्टकासा) मा स्पर्शो (जहण्णाभिणिबोहियनाणीण भंते । पंचिदियनिरिक्खजोणियाणं केवइया पज्जवा पण्णत्ता १) È लगवन् ४धन्य मलिनियोधि ज्ञानी पयेन्द्रिय तिर्यथाना उटा पर्याय ह्या छे ? (गोयमा । अणंता पज्जवा पण्णत्ता) डे गौतम | अनन्त पर्याय उद्या (से केणट्ठेण भते । एव च जहण्णा भिणियो हियनाणीणं तिरिक्खजोणियाणं अनंता पज्जवा पण्णत्ता 1 ) हे भगवन् शा भरोस धन्य मलिनिमोधिज्ञानी तिर्थ थाना अनन्त पर्याय ह्या छे ? (गोयमा । जहणाभिनिबोहियनाणी पंचि दिर्यात रिक्खजोणिए जहण्णा मिणिवोहियणाणिस्स पंचि - दियतिरिक्खजोणियस्स) हे गौतम! धन्य मलिनिमोधि ज्ञानी यथेन्द्रिय छे
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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