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प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ सू.१० पञ्चेन्द्रियतियग्योनिकानां पर्याया ७६५ एवमुच्यते-जान्य गुणकालकानां पञ्चेन्द्रियतिर्यज्योनिकानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्यगुणकालकः पञ्चेन्द्रियतियग्योनिको जघन्यगुणकालकस्य पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया चतुः स्थानपतितः, स्थित्या चतुः स्थानपतितः, कृष्णवर्णपर्यवैस्तुल्यः, अवशेपैः वर्णगन्धरसस्पर्शपयवैः त्रभिः ज्ञानः, त्रिभिरज्ञानः, त्रिभिर्दर्शनैः पट्स्थानपतितः, एवमुत्कृष्टगुणकालकोऽपि, अजयन्यानुत्कृष्टगुणकोलकोऽपि (गोयमा ! अणंता पजवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणटेणं भंते ! एवं बुच्चइ-जहण्णगुणकालगाणं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं अगंता पन्जवा पण्णत्ता ?) किस कारण हे भगवन् ! ऐसा कहा जाता है कि जघन्यगुणकाले पंजेन्द्रिय तियच के अलन्त यर्याय हैं ? (गोयमा !) हे गौतम ! (जहण्णगुणकालए पंचिंदियतिरिक्खजोणिए) जघन्यगुणकाला पंचेन्द्रिय तिर्यच (जहण्णगुणकालगस्स पंचिंदियतिरिक्खजोणियस्स) जवन्यगुणकाले पंचेन्द्रिय तिर्यंच से (बट्टयाए तुल्ले) द्रव्य से तुल्य है (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशां से तुल्य है (ओगाहणट्टयाए चउठाणवडिए) अवगाहला ले चतुःस्थानपतित है (ठिईए चउठाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थालपतित है (कालवण्णपज्जवेहिं तुल्ले) काले वर्ण के पर्यायों से तुल्य है(अवलेसेहिं वण्णगंधरसफासपज्जवेहिं) शेष, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श के पर्यायो से (तिहिं नाणेहिं) तीन ज्ञानो से (तिहिं अण्णाणेहिं) तीन अज्ञानों से (तिहिं दसणेहिं) तीन दर्शनों से (छटाणवडिए) षट्स्थानपतित है (एवं उक्कोलगुणकालए वि) इसी अणंता पजवा पण्णत्ता) गौतम । मनन्त पर्याय ४ा छ (से केणटठेणं भंते ! एवं वुच्चइ जहण्णगुणकालगाणं पंचिदियतिरिक्खजोणियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता १) भगवान् ॥ ४॥२॥णे समवाय छे धन्य गुगुणा पायेन्द्रिय तिय यन। मनन्त पर्याय छ १ (गोयमा ।) 3 गौतम (जगुणकाल र पचि दिय तिरिक्खजोणिए) ४५न्य शुशु ७ पयन्द्रिय तियय (जहण्णगुणकालगस्स पंचिदियतिरिक्खजोणियस्स) धन्य गुथु ७ पयन्द्रिय तिय यथी (दचयाए तुल्ले) द्रव्यथी तुल्य छ (पग्सयाए तुल्ले) प्रदेशाथी तुझ्य (ओगाहणयाए चढाणवडिए) भगाउनाथी यतु:स्थान पतित छ (ठिईए चट्टाणवडिए) स्थितिथी यतु:स्थान पतित छ (कालवण्णपज्जवेहि तुल्ले) ४ावना पायाथी तुक्ष्य छ (अवसेसेहि वण्णगंधरसफासपजयेहि) शेष, पर्य, मध, २४ २५शन। पर्यायाथी (तिहिं अण्णाणेहि) अज्ञानायी (निहिं दसणेहि ) नाशनाथी (छटाणवडिए) ५८स्थान पतित छ (एवं उकोसगुणकालए वि) मे ४२ पट शुष्प