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भशापनासूत्र तुल्यः, प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया चतु: म्थानपतितः स्थित्या तुल्या, वर्णगन्धरसस्पर्शपर्यवैः द्वाभ्यामज्ञानाभ्यां द्वाभ्यां दर्शनाभ्यां षट्स्थानपतितः उत्कृष्टस्थितिकोऽपि एवञ्चैव, नवरं द्वे ज्ञाने, द्वे अज्ञाने, द्वे दर्शने, अजघन्यानुत्कृष्टस्थितिकोऽपि एवञ्चव, नवरं स्थित्या चतुः स्थानपतितः, त्रीणि ज्ञानानि, त्रीणि अज्ञानानि, त्रीणि दर्शनानि, जवन्याणकालकानां भदन्त ! पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्राप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! (दव्वट्टयाए तुल्ले) द्रव्य से तुल्य है (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रदेशों से तुल्य हैं(ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए) अवगाहना से चतुःस्थानपतित है (ठिईए तुल्ले) स्थिति से तुल्य है (आण्णगंधरसफासपज्जवेहिं) वर्ण, गंध, रस, स्पर्श के पर्यायों से (दोहिं अण्णाणेहिं) दो अज्ञानों से (दोहिं दसणेहिं) दो दर्शनों से (ट्ठाणचडिए) षट्स्धानपतित है __(उक्कोसठिइए वि एवं चेव) उत्कृष्टस्थितिवाला भी ऐसा ही है (णवरं दो णाणा दो अण्णाणा) विशेषता यह है कि दो ज्ञान और दो अज्ञान (दो दंसणा) दो दर्शन भी कहना ।
(अजहण्णमणुक्कोसठिइए वि एवं चेव) मध्यम स्थिति वाला भी इसी प्रकार (नवरं) विशेष यह कि (ठिईए चउट्टाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित (तिणि णाणा) तीन ज्ञान (तिन्नि अण्णाणा) तीन अज्ञान (तिन्नि दसणा) तीन दर्शन
(जहण्णगुणकालगाणं भंते ! पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) जघन्यगुणकाले पंचेन्द्रिय तिर्यच के हे भगवन् ! कितने पर्याय हैं ?
तुक्ष्य छ (परसटूठयाए तुल्ले) प्रशाथी तुक्ष्य छ (ओगाहणठ्याए चउट्टाणवडिए) म नायी यतु स्थान पतित छ (ठिईए तुल्ले) स्थितिथी तुक्ष्य छे (वण्णगंधरसफासपज्जवेहिं) १४, १५, २स २५शन पर्यायाथी (दोहिं अण्णाणेहि) में अज्ञानाथी (दोहिं दसणेहि) ये शनाथी (छटाणवडिए) ५८स्थान पतित छ
(उकोसठिईए वि एवं चेव) Gष्ट स्थितिमा पर मेवान (णवर दो णाणा दो अण्णाणा) विशेषता के छ है ये ज्ञान मे २५ज्ञान (दो दसणा) मे शान ५] घi छे. (अजहण्णमुणुकोस ठिईए वि एवं चेव) मध्यम थिति पाए मे रे (नवर) विशेष से छे (ठिईए चउढाणवडिए) स्थितिथी यतु.स्थान पतित छ (तिण्णि णाणा) त्र ज्ञानी (तिन्नि अण्णाणा) ! अज्ञान (तिन्नि दसणा) १ शन
(जहण्णगुणकालगाणं अंते । पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा १) धन्य ४० गुवाणा पथेन्द्रिय तिययन भगवन् ! 3टसा पाय छ ? (गोय मा