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________________ प्रशापनासूत्रे जघन्येन द्वाविंशतिः सागरोपमाणि अन्तर्मु हु”नानि, उष्टेन त्रयोविंशतिः सागरोपमाणि अन्तर्मुहूतौनानि, अधस्तनमध्यमग्रैवेयकदेवानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन त्रयोविंशतिः सागरोपमाणि, उत्कृष्टेन चतुर्विंशतिः सागरोपमाणि, अपप्तिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि, उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन त्रयोविंशतिः सागरोपमाणि अन्तमहतॊनानि, उत्कृष्टेन चतुर्विंशतिः सागरोपमाणि अन्तर्मुहूतानानि, अधस्तनोपरिमौवेयकदेवानां पृच्छा, बावीसं सागरोवमाइ अंतोमुहुत्तणाई, उनकोसेणं तेवीसं सागरोघमाइं अंतोमुहुत्तूणाई) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त कम बाईस सागरोपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेईस सागरोपम की । (हेटिममज्झिम गेविज्जगदेवाणं पुच्छा ?) अधस्तन मध्यम ग्रैवेयक के देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहणेणं तेवीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं चउवीसं सागरोवमाइ) हे गौतम ! जघन्य तेईस सागरोपम की और उत्कृष्ट चौबीस सागरोपम की (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तकों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहाणेण वि उक्कोसेण घि अंतोमुहुत्तं) हे गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्नमुहूर्त की (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तक देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेणं तेवीसं सागरोवमाई अंतोनुहुत्तणाई उक्कोसेणं चउवीसं सागरोवमाई अंतोनुहुत्तणाई) हे गौतम ! जघन्य तेईस सागरोपम में अन्तर्मुहूर्त कम, उत्कृष्ट चौवीस सागरोपम में अन्तर्मुहूर्त कम की। स्थिति सी ४ी छ ? (गोयमा । जहणेणं बावीसं सागरोवभाई अंतोमुहुत्तणाई उक्कोसेण तेवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तणाई) गौतम IEन्य अन्तभुत माछ। બાવીસ સાગરોપમની છે ઉત્કૃષ્ટ અન્તર્મુહૂર્ત ઓછા તેવીસ સાગરોપમની હોય છે (हेटिममज्झिमगेविज्जगदेवाण पुच्छा ?) मधस्तन मध्यम अवेयना हेवानी स्थिति सी छ ? (गोयमा । जहण्णेणं तेवीसं सागशेवमाई, उक्कोसेण चउवीसं सागरोवमाई) धन्य तेवीस सापभनी मन Bष्ट, व्यावीस सागरोपमनी हाय छे. (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्यानी स्थिति सी ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उकोसेण वि अंतोमुहत्त) गौतम | धन्य ५ मन उत्कृष्ट ५९ मन्तभुइतनी डाय छ (पज्जत्तयाणं पुच्छा,) पर्याप्त नी स्थिति उसी छे ? (गोयमा ! जहण्णेणं तेवीसं सागरोवमाई अन्तोमुहुत्तणाई, उक्कोसेणं चउवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तणाइं).गौतम I यन्य तेवीस सा॥२।५ममा मन्तभुत माछा उत्कृष्ट ચાવીસ સાગરેપમમાં અન્તર્મુહૂત ઓછાની
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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