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प्रमैयबोधिनी टीका पद ४ सू.१० ग्रैत्रेयकादिदेवानां स्थितिनिरूपणम् ५३१ गौतम ! जघन्येन चतुर्विंशतिः सागरोपमाणि, उत्कृष्टेन पञ्चविंशति सागरोपमाणि अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन-चतुर्विंशतिः सागरोपमाणि अन्तर्मुहूर्तेनानि, उत्कृष्टेन पञ्चविंशतिः सागरोपमाणि अन्तर्मुहूतनानि, मध्यमाधस्तनप्रैवेयकदेवानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन पञ्चविंशतिः सागरोपमाणि, उत्कृष्टेन पइविंशतिः सागरो
(हेष्टिमउरिमगेविज्जग देवाणं पुच्छा ?) अधस्तन-उपरितन ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा जहण्णेणं चउवीसं साग रोवमा, उक्कोसेणं पणवीसं सागरोवमाई) हे गौतम ! जघन्य चौवीस सागरोपम की, उत्कृष्ट पच्चीस सागरोपम की (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहपणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्त) हे गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तकों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेणं चउवीसं सागरोक्माई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं पणवीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम चौवीस सागरोपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त कम पच्चीस सागरोपम की।
(मज्झिम हेडिमगेविज्जगदेवाणं पुच्छा ?) मध्यम-अधस्तन अर्थातू मध्य के तीन अवेयकों में सब से नीचे के ग्रैवेयक के देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहाणेणं पणवीसं सागरोवमाइं,
(हटिम उवरिमगेविज्जगदेवाणं पुच्छा ?) अस्तन परितन अवय४ हेवानी स्थिति सी छ ? (गोयमा । जहण्णेण चउवीसं सागरोवमाई, उक्कोसेणं पणत्रीसं सागरोवमाई) गौतम | धन्य यावास सागरामनी, उत्कृष्ट ५२यीस सागरामनी डाय छे. (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्त हेवोनी स्थिति सी छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं वि उकोसेणं वि अन्तोमुहुत्तं) गौतम! धन्य ५ मिने Gre मन्तभुतनी साय छ (पज्जत्तयाणं पुच्छा ? पर्याप्तीनी स्थिति सी छ ? (गोयमा । जहण्णेणं चवीसं सागरोवमाई, अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं पणवीसं सागरोवमाइं अंतोमुहत्तणाई) 3 गौतम | धन्य मन्तभुत माछा यावीस સાગરોપમની, ઉત્કૃષ્ટ અન્તમુહૂર્ત ઓછા પચીસ-સાગરોપમની હોય છે
(मझिम हेट्रिम गेविज्जगदेवाणं पुच्छा ?) मध्यम- मस्तन अर्थात मध्यना त्रय अवेय४मा पाथी नीयना अवेयना हेवानी स्थिति सी छ? (गोयमा ! जहणेणं पणवीसं सागरोवमाई, उक्कोसेण छथ्वीसं सागरोवमाई) 3 गौतम ! -य