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प्रमेयबोधिनी टीका पद ४ सू०५ पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां स्थितिनि० ४८१ प्टेन पूर्वकोटी, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तमुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन पूर्वकोटि अन्तर्मुहूर्तोला, गर्भव्युत्क्रान्तिक पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन त्रीणि पल्योपमानि, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन त्रीणि पल्योपमानि अन्तर्मुहूर्तोनानि, जलचर पञ्चेन्द्रियपूर्व की (अपजस्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्ण चि, उक्कोलेण चि अंतोमुहुत्तं) हे गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तकों की स्थिति कितनी ? (गोयला ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोलेणं पुव्वकोडी अंतोमुत्तूणा) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम करोड पूर्व की।
(गम्भवतिय पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यचों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहपणेणं अंतोमहत्त, उक्कोसेणं तिनि पलिओवमाई) जघन्य अन्तर्महत उत्कृष्ट तीन पल्योपस (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्सकों की पृच्छा ? (गोयमा ! जहण्णेण विउक्कोसेण वि अंतोमुष्टुत) हे गौतम ! जघन्य भी, और उत्कृष्ट भी अन्तमुहूर्त (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्त की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहत्तं) जघन्य अन्तर्मुहूर्त (उक्कोसेणं तिनि पलिओवमाइं अंतोमुहत्तूणाई) कोडी) गौतम धन्य मन्तभुत, अकृष्ट ४२।३ पूर्वनी (अपज्जत्तयाणं पुच्छा) मपर्याप्तीनी स्थिति की छे (गोयमा ! जहण्णेणं वि, उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं) गौतम | धन्य प] मन. ष्ट पY अन्तकृतनी (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पतिजोनी स्थिति मी ? (गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्बकोडी अंतोमुहुत्तणा) गौतम ! धन्य मन्तभुत, अष्ट मन्तभुत माछ। ४२।७ पूना
(गव्भवक्कंतिय पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) र पथन्द्रिय तिय यानी १२७ ? (गोयमा ।) गौतम । (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई) धन्य मन्ततः , a पक्ष्या५म (अपज्जत्तयाणं पुच्छा) सपर्या छानी छ ? (गोयमा । जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं) गौतम ? धन्य ५ मने Grabट पशु मन्तभुत (पज्जत्तयाणं पुच्छा) पर्यासोनी स्थिति
छ ? (गोयमा ) 3 गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुन्तं) धन्य मन्तभुति (उकोसेणं तिन्नि पलिओवमाई अंतोमुहुत्तणाई) दृष्ट मन्तभुत सौछ। ऋष्य
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