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प्रज्ञापनास्त्रे पणे अंतोमुहत्त, उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागं, अंतोमुत्तूणं ॥v० ५॥ ___ छाया–पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृप्टेन त्रीणि पल्योपमानि अपर्याप्तकानां, पृच्छा, गौतम ! जयन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन त्रीणि पल्योपमानि अन्तर्मुहानानि, संमच्छिमपञ्चेन्द्रियतियग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहर्तम्, उत्कृ.
पंचेन्द्रिय तिर्यचों की स्थिति .. शब्दार्थ-(पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णता?) पंचेन्द्रिय तियचों की हे भगवन् ! कितने काल तक की स्थिति कही है (गोयम्ग) हे गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहतं, उक्कोसेणं तिमि पलिओवमाई) जघन्य अन्तर्मुहर्त, उत्कृष्ट तीन पल्योपम (अपजत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की (पजत्तयाणे पुच्छा ?) पर्याप्तकों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम ! (जपणेणं अंतोसुहृत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई) जघन्य अन्तर्मुहर्त, उत्कृष्ट अन्तर्मुहर्त्त कम तीन पल्योरम । _ (समुच्छिमपंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) संमूर्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहणेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं पुव्वकोडी) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट करोड
પચેન્દ્રિય તિર્યંચોની સ્થિતિ शहाथ-(पचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते । केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता !) पथेन्द्रिय तिय यानी भगवन् उटसा नी स्थिति ४ी छ ? (गोयमा) 8 गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई) धन्य मन्तभुः इत, उत्कृष्ट न पक्ष्यापम (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तोनी स्थिति छ ? (गोयमा !) 8 गौतम ! (जहण्णेणं वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) धन्य ५] भने उत्कृष्ट ५Y मन्तभुता (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्त नी स्थितिनी छ ? (गोयमा ) हे गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं अंतोमुहुत्तणाई) घन्य अन्ततः, मने अष्ट मन्तभुत माछा पक्ष्यायम
(संमुच्छिम पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) स भूमि पयन्द्रिय तिय योनी स्थिति सी छे ? (गोयमा । जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्व