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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ३ सू.२ विशेषतो जीवानामल्पबहुत्वम् असंख्येयगुणाः, दाक्षिणात्येभ्यो वालुकाप्रभापृथिवी नैरयिकेभ्यो द्वितीयायाः शर्कराप्रभायाः पृथिव्याः नैरयिकाः पौरस्त्यपश्चिमोत्तरेण असंख्येयगुणाः, दक्षिणेन असंख्येयगुणाः, दाक्षिणात्येभ्यः शर्कराप्रभापृथिवी नैरयिकेभ्यः अस्या रत्नप्रभायाः पृथिव्याः नैरयिकाः पौरस्त्यपश्चिमोत्तरेण असंख्येयगुणाः, दक्षिणेन असंख्येयगुणाः, दिगनुपातेन सर्वस्तोकाः पञ्चन्द्रियाः तिर्यग्योनिकाः पश्चिमेन काप्रभा पृथिवी के (नेरइया) नारक (पुरच्छिम पच्चत्थिन उत्तरेणं) पूर्व, पश्चिम, उत्तर में (असंखेजगुणा) असंख्यात गुणा हैं (दाहिणणं असंखेजगुणा) दक्षिण में असंख्यात गुणा हैं (दाहिणिल्लेहिंतो वालुयप्पभा पुढवीनेरइएहिंतो) दक्षिण के वालुकाप्रभा पृथिवी के नारकों से (दुइयाए सकरप्पभाए पुढवीए) दूसरी शर्करामभा पृथिवी के (नेरइया) नारक (पुरच्छिम पच्चस्थिम उत्तरेणं) पूर्व, पश्चिस्व और उत्तर में (असंखेज्जगुणा) असंख्यात गुणा हैं (दाहिणेणं असंखेजगुणा) दक्षिण में उनसे भी असंख्यात गुणा हैं (दाहिणिल्लेहितो सक्करप्पभा पुढवीनेरइए हितो) दक्षिण दिशा के शर्कराप्रभा पृथिवी के नारकों से (इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए) इस रत्नप्रभा पृथिवी के (नेरइया) नारक (पुरच्छिम पच्चस्थिम उत्तरेणं) पूर्व, पश्चिम उत्तर में (असंखेज्जगुणा) असंख्यात गुणा हैं (दाहिणेणं असंखेज्जगुणा) दक्षिण में उनसे भी असंख्यात गुणा हैं। (दिसाणुबाएणं) दिशाओं की अपेक्षा (सव्वत्थोवा पंचिंदिया) सब से कम पंचेन्द्रिय (तिरिक्खजोणिया) तिर्यक योनिक जीव (पच्छिमेणं) पायुमा पृथ्वीना (नेरइया) ना२४ (पुरच्छिम पच्चत्थिम उत्तरेणं) पू, पश्चिम उत्तरभा (असंखेज्जगुणा) मसण्यात गुणा छ (दाहिणेणं असंखेज्जगुणा) दृक्षिाणुभा असण्यात ॥ छ (दाहिणिल्लेहिंतो वालुयापभा पुढवी नेरइएहितो) दक्षिा पासुमा पृथ्वीन नाथी (दुइयाए सक्करप्पभाए पुढबीए) मील शराप्रमा पृथ्वीना (नेरइया) ना२४ (पुरच्छि पच्चत्थिम उत्तरेणं) पूर्व पश्चिम मने उत्तरमा (असंखेज्जगुणा) मसच्यात गुण छ (दाहिणेणं असंखेज्जगुणा) दक्षिाभ प तभनाथी ५ मधि: २१ च्यात गुणा छ (दाहिणिल्लेहितो सक्करप्पभा पुढवी नेरइएहितो) दक्षिण दिशान शराममा पृथ्वीना नारथी (इमीसे रयणापभाए पुढवीए) । २त्नप्रभा पृथ्वीना (नरइया) ना२४ (पुरच्छिम पच्चत्थिम उत्तरेणं) पू', पश्चिम, उत्तरमा (असंखेज्जगुणा) असभ्यात गुए छ (दहिणेणं असंखेज्जगुणा) दक्षिणुभ तभनाथी ५९] असण्यात गुणा छ । (दिसाणुवोएण) हिमानी अपेक्षाये (सव्वत्योवा पंचिंदिया) माथी माछ।
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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