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________________ प्रज्ञापनासूत्र पौरस्त्येन विशेषाधिकाः, दक्षिणेन विशेपाधिकाः उत्तरेण विशेपाधिकाः, दिग'नुपातेन सर्वस्तोका मनुष्याः दक्षिणोत्तरेण, पौरस्त्येन संख्येयगुणाः पश्चिमेन • विशेषाधिकाः, दिगनुपातेन सर्वस्तोका भवनवासिनो देवाः पौरस्त्येन पश्चिमेन उत्तरेण असंख्येयगुणाः, दक्षिणेन असंख्येयगुणाः, दिगनुपातेन सर्वस्तोकाः वानव्यन्तराः देवाः पौरस्त्येन पश्चिमेन विशेषाधिकाः, उत्तरेण विशेषाधिकाः, पश्चिम में हैं (पुरच्छिमेणं विसेसाहिया) पूर्व में उनसे विशेषाधिक हैं (दाहिणेणं विसेसाहिया) दक्षिण में उनसे विशेषाधिक हैं (उत्तरेणं विसेसाहिया) उत्तर में उनसे भी विशेषाधिक हैं। ___(दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा मणुस्सा दाहिणउत्तरेणं) दिशाओं की अपेक्षा सबसे कम मनुष्य दक्षिण-और उत्तर में हैं (पुरच्छिमेणं संखेजगुणा) (पूर्व में संख्यात गुणा अधिक हैं (पच्चस्थिमेणं विसेसाहिया) पश्चिम में विशेषाधिक हैं। (दिसाणुवाएणं) दिशाओं की अपेक्षा (सव्वत्थोवा भवणावासी देवा) सब से कम भवनवासी देव (पुरच्छिमेणं पच्चत्यिमेणं) पूर्व और पश्चिम में हैं (उत्तरेणं असंखेजगुणा) उत्तर में असंख्यात गुणा (दाहिणेणं अदनखेज्जगुणा) दक्षिण में असंख्यात गुणा हैं। ___ (दिसाणुवाएण) दिशाओं की अपेक्षा (सव्वत्थोवा वाणमंतरा देवा) अगसे कम वानव्यन्तर देव (पुरच्छिमेणं) पूर्व में हैं (पच्चत्थिमेणं ५येन्द्रिय (तिरिक्खजोणिया) तिय योनि १ (पच्छिमेणं) पश्चिममा (पुरच्छिमेण विसेसा) पूर्वमा तेनाथी विशेषाधि४ छ (दाहिणेणं विसेसाहिया) दक्षिणमा ५५ तथा विशेषावि छ (उत्तरेणं विसेसाहिया) उत्तरमा तेमनायी ५ विशेषाधि छे. (दिमाणुवाएणं सदस्योवा मणुस्सा दाहिणउत्तरेणं) हिमानी अपेक्षाये २ माथी छ। मनुष्य क्षिा मने उत्त२॥ छ (पुरच्छिमेणं संखेज गुणा) पूर्वमा सच्यात गुण पिर छ (पच्चस्थिमेणं विसेसाहिया) पश्चिममा વિશેષાધિક છે ___(दिसाणुवाएणं) हिशायानी अपेक्षा (सव्वत्थोवा भवणवासीदवा). मधाथी सो भवनवासी देव (पुरच्छिमेणं पच्चत्यिमणं) पूर्व मने पश्चिममा छ (उत्तरेण असंखेज्ज गुणा) उत्तरमा मसभ्यात गुणा छ (दाहिणेणं असंखेज्ज गुणा) दक्षिणमा सयात गु। छे (दिसाणुवाएण) हिशामानी अपेक्षा (सव्वत्योवा वाणमंतरा देवा) माथी छ। पानव्यन्त२ हेव (पुरच्छिमेणं पूर्व भा छ (पच्चत्थिमेण विसेसाहिया) पश्चिममा विशेषाधि छे (उत्तरेणं विसे
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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