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प्रमेयवोधिनी टीका पद ३ सू.२८ जीवपुद्गलादीनामलपवहुत्वम् अणंतगुणा, सव्वदवा विसेसाहिया सव्वपएसा अणंतगुणा, सव्वपज्जवा अणंतगुणा । दारं २३ ॥सू० २८॥ ___ छाछा -एतेपां खलु भदन्त ! जीवानां पुद्गलानाम् अद्धासमयानों सर्वद्रव्याणाम्। सर्वप्रदेशानाम् सर्वपर्यशानाम् च कतरे कतरेभ्योऽल्पा चा, बहुका वा, तुल्या वा; विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोका जीवाः, पुदगला अनन्तगुणाः सर्वद्रव्याणि विशेषाधिकानि, सर्वप्रदेशाः अनन्तगुणाः सर्वपर्यवा अनन्तगुणाः द्वारम् २३ ॥सू०२८॥ ___टीका--अथ जीवद्वारमधिकृत्याल्पवहुत्वादिकं प्ररूपयितुमाह-'एएसिणं भंते ! जीवाणं' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! एतेषां खलु जीवानाम् 'पोग्ग
जीवद्धार वक्तव्यता शब्दार्थ-(एएसि णं भंते !) हे भगवन् ! इन (जीवाणं) जीवों (पोग्गलाणं) पुद्गलों (अद्धासमयाण) अद्वासमयों (सव्व दव्याणं) सर्व द्रव्यों (सव्व पएसाणं) सर्व प्रदेशों (सव्व पज्जवाण य) और सब पर्यायों में (कयरे कयरेहिंतो) कौन किससे (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?) अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? (गौयमा) हे गौतम ! (सव्वत्थोवा जीवा) जीव सब से कम हैं (पोग्गला अणंतगुणा) पुद्गल अनन्त गुणा हैं (अद्वासमया अणंतगुणा) अद्धासमय अनन्तगुणा हैं (सव्व व्या विसेसाहिया) सर्व द्रव्य विशेषाधिक हैं (सव्वपएसा अणंतगुणा) सर्व प्रदेश अनन्तगुणा हैं (सव्वपजवा अणंतगुणा) सर्व पर्याय अनन्तगुणा हैं। ___ अब जीवहार को लेकर अल्पवहुत्व की प्ररूपणा की जाती है--
જીવઢાર વક્તવ્યતા Avatथ -(एएसिणं भंते 1) गवन् । २L (जीवाणं) w३ (पोग्गलाणं) Yो। (अद्धा समयाणं) महा सभयो (सव्व दाणं) सब द्र०या (सव्य पएसाणं) सप्रदेशो (सव्वपज्जवाण य) मने गया पर्यायाम (कयरे कयरेहितो)
नाथी (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा बिसेसाहिया ?) २५६५ घा, तुझ्य અગર વિશેષાધિક છે ?
(गोयमा ) हे गौतम ! (सवयोवा जीवा) ७५ पाथी माछा है (पोग्गला अणतगुणा) पुन अनन्त छ (अद्धा समया अणनगुणा) भद्धा समय अनन्त गा छ (सञ्च दव्या विसेसाहिया) सर्प द्र०य विशेषाषि छ. (सब पएसा अगंतगुणा) से प्रदेश अनन्त गा छे (सव्यपन्जवा अणंतगुणा) सब पर्याय अनन्त छ.