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________________ १९४ प्रशापनाम छाया-एतेषां खलु भदन्त ! जीवानां सनेदकानाम्, स्त्री वेदकानाम्, पुरुपवेदकानाम्, नपु सगवेद कानाम्, अवेदकानाञ्च कतरे यतश्योऽल्पा बा, बहुका वा, तुल्या वा, विशेषाधिका वा ? गौतम ! सर्वम्तोकाः जीवाः पुम्पवेदकाः स्त्रीवेदकाः संग्ख्ये यगुणा अवेदकाः अनन्तगणाः, नपुंसक वेदकाः अनन्तगणाः, सवेदका विशेषाधिकाः, द्वारम् ५॥ सू० ११ ॥ ____टीका-अथ वेदद्वारमधिकृत्याल्पबहुत्यादिकं प्ररूपयितुमाह-'पासि णं भंते जीवाणं' हे भदन्त ! एतेषां सलु जीवानाम् 'मवेयगाणं' सवेदकानाम् समुच्चयवेदकानाम् इत्थी वयगाणं' स्त्रीवेदकानाम्, 'पुरिसवेयगाणं' पुरपवेदकानाम् 'नपुंसगयेयगाणं' नहुंचकवेदकानाम्, 'अवेयगाण य' अवेद कानाच सिद्धानाम् (सवेयगाणं) वेद महिनों (इत्थी वेगगाणं) स्त्रीवेदकों (पुरिनवेयगाणं) पुरुप वेदकों (नपुंसगवेयगाणं) नपुंगक वेदकों (अवेयगाण य) और अवेदकों में (कयरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पा वा बहुया तुल्ला वा विलेसाहिया छा ?) अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (अध्ययोवा जीवा पुरिसवेषगा) सबसे कम जीव पुरुपवेदी हैं (इत्थीवेयगा संखेन्जगुणा) स्त्रीवेदी संन्यानगुणा अधिक हैं (अवेयजा अर्धनगुणा) अवेदी अनन्तगुणा हैं (नपुंसगवेयगा अणनगुणा) नपुंसकवेदी अनन्तगुणा हैं (सोयगा विसेमाहिया) मवेद जीव विशेषाधिक हैं। अर वेदवार की अपेक्षा अल्पबद्धत्व प्रदर्शित किया जाता हैटीकार्य श्री गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! इन सवेद अर्थात् वेद से युक्त जीवों में, स्त्रीवेद बालों में, पुरुपवेद वालों में, सहित (इत्थीवेयगाण) की । (पुरिम वेयगाण) ५३५३६। (नपुंसगवेयगाणं) न४३०। (अवेयगाण य) गने अवस्थामा (कचरे कयरे हितो) ए अनाथी (अग्पावा बहुया वा तुल्ला वा विसंसाहिया वा ?) २१४५, ५, तुक्ष्य मगर વિશેષાધિક છે? (गोयमा) हे गौतम । (सव्यत्योवा जीवा पुरिमवेयगा) याची गोछ। ५३५ वही छ (इत्यीवेयगा संखेज्जगुणा) स्त्री ही साता अधिः छ (अवेयगा अर्णतगुणा) यही मनन्त छ (नपुंसगवेयगा अणंतगुणा) नधुस४वटी अनन्त आशा छ (सवेयगा विसेसाहिया) सवे। ७५ विशेषाधि छे. હવે વેદકારની અપેક્ષાએ અલ્પ બહુત્વ પ્રદર્શિત કરાય છે. ટીકાર્ય–શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે-ભગવદ્ ! આ સવેદ અર્થાત્ વેદથી યુક્ત મા, સી વેદનાળામા, પુરૂદવાળામા, નપુંસક વેદનાળામાં તથા અદ
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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