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________________ १२३ प्रमैयबोधिनी टीका पद ३ सू.७ बादरजीवाल्पवहुत्वम् पादरवनस्पतिकायिकानां पर्याप्त कानां वादरनिगोद पर्याप्तकानां वादरत्रसकायिक पर्याप्तकानां च कारे कतरेभ्योऽल्पा वा, बहुका वा, तुल्या वा, विशेपाधिका वा ? गौतम ! सर्वस्तोका बादतेजःकायिकाः पर्याप्तकाः बादरत्रसकायिकाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः प्रत्येकशरीरवादरवनस्पतिकायिका पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः वादरनिगोदाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः बादरपृथिवीकायिकाः पर्याप्तकाः असंख्येयाणाः, वादराप्कायिकाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, बादरवायुकायिकाः पर्याप्तकाः असंख्येयगुणाः, बादरवनस्पतिकायिकाः पर्याप्तकाः (पत्तेयसरीर वायरवणस्सइकाइयाणं पज्जतयाणं) प्रत्येक शरीर बादर वनस्पतिकाय के पर्याप्तकों (बायरनिगोद पज्जत्तयाणं) बादर निगोद के पर्याप्तकों (बायरतसकाइय पज्जत्तगाण य) और वादर ब्रसकायिक पर्याप्तकों में (कयरे कयरेहितो) कौन किससे (अप्पा वा यहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?) अल्प, बहुत, तुल्य या विशेपाधिक हैं? " (गोयमा!) हे गौतम ! (सव्वत्थोवा बादरतेउकाइया पज्जत्तया) सब से कम बादर तेजस्काय के पर्याप्त हैं (बायरतसकाइया पज्जत्तया 'असंखेज्जगुणा) चादर त्रसकायिक पर्याप्त असंख्यात गुणा हैं (पत्तेय. 'सरीरबायरवणस्सइकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) प्रत्येक शरीर पादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त असंख्यात गुणा है (वादरनिगोदा अपज्जत्तया असंखेज्जगुणा) बादर निगोद पर्याप्तक असंख्यातगुणा हैं (बादरपुढविकाइया पज्जत्तया असंखेज्जगुणा) बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त असंख्यातगुणा हैं (घायरआ उकाड्या पज्जत्तगा असंखेज्ज५ मा (पत्तयसरीरवणस्सइकाइयाण पज्जत्त गाणं) प्रत्ये। श६२ ४२यनपतिअयना पर्याप्त। (वायर निगोड़ पम्जत्तयोण) माय२ निगाहना पर्याप्त। (वायर तसकाइय पजत्तगाण य) अने ॥२ सय ५र्यातीमा (फयरे कयरेहितो) आष्य नाथी (अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? (३५, घ! તુલ્ય અગર વિશેષાધિક છે ? (गोयमा !) ७ गौतम! (सबल्यावा वादरतेउकाइया पज्जत्तया) माया माछा ॥४२ ते४२४ायना पर्यात छे. (वायर तसकाइया पज्जत्तया असंखेन्जगुणा) मा:२३सय पर्यात २मसभ्यातमा छ (पत्तेय सरीरवणम्सकाच्या पजत्तया असंखेनगुणा) प्रत्ये शरी२ ॥६२पनपतिथि पर्याप्त PAA भ्याता छ. (वायर निगोटा पञ्जत्तया असंखेजगुणा) ६२ निगाह पर्यास अन्यात छ (वायर पुढविकाइया पजत्तया असंखेम्जगुगा) मा६२ grilsयि४ पास म . (वायर अ.उफ इसा पजत्तमा अखाजगुणा) १२ 11.
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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