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________________ १०९६ पक्षापनास्त्र सकसंख्येयवर्षाशुष्कर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! त्रिभ्योऽपि उपपद्यन्ते, एवं यावत् अच्युतः कल्पः, एवं चैव ग्रेवे. यकदेवा अपि, नवरय्-असंयतसंयतासंयता एते प्रतिपेहव्याः , एव ययैव ग्रंवेयकदेवास्तथैव अनुत्तरोपपातिका अपि, नवरम्-इदम् नानात्वं संयताश्चैव, यदा-सम्यग्दृष्टि संयतपर्यास कसंख्येयवर्पायुष्कर्म भूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते किं प्रमत्त संयमत सम्यग्दृष्टिपर्याप्तकेभ्यः अप्रमत्त ज्जवामाउयकम्मभूमगगाभचक्कंतियमसेहितो उववज्जति?) क्या सयन सम्मग्दृष्टियों ले, असंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तो से अथवा संयतासंयतसम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यातवर्पायुष्क कर्मभृमिज गर्भज मनुप्यों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (तीहिंतो वि उववज्जति) तीनों से ही उत्पन्न होते हैं (एवं जाव अच्चुगो कप्पो) इसी प्रकार अच्युत कल्प तक (एवं चेव गेविज्जगदेवा वि) इसी प्रकार ग्रैवे यक देव भी (लवर) विशेष (असंजतसंजतासंजता एते पडिसेहेयव्वा) असंयत और संयतासंयत, इनका निपेध करना चाहिए (एवं जहेव गेविजगदेवा तहेव अणुत्तरोवववाझ्यावि) इसी प्रकार जैसे ग्रेवेयक देव वैसे ही अनुत्तरोपपातिक भी (नवरं इमं नाणत) विशेष भेद यह है (संजया चेव) संयत ही (जह सम्मदिहिसं जतपज्जत्तसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कंतियमसेहितो उवचज्जंनि) यदि सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संग्च्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभृमिज गर्भजमनुष्यों से उत्पन्न होते हैं (किं पमत्तपज्जत्तएहि तो,संजयासंजय सम्मदिट्ठिपज्जत्तसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगम्भवक्कतियः मणसहि तो उववज्जति ?) शुसपत सस्पटमाथी मसयत सभ्यष्टि પર્યાપ્તથી અથવા સંયતા સંતસમ્યગ્દષ્ટિ પર્યાપ્ત સંખ્યાત વર્ષાયુઠ્ઠ કર્મભૂમિક गर्म भनुष्याथी ५न्न थाय छ ? (गोयमा ) है गौतम ! (तीहिंतोवि उववज ति) त्राणेथीयन्न थाय छे. (एवं जाव अच्चुगो कप्पो) येशते अन्यत४५ सुधी (एवं चेत्र गेविज्जगदेवा वि) मेकर प्रशारे अवय ४२ प (नवरं) विशेष (असंयत संजतासंजता एते पडिसेहेयव्वा) मयत मन स यतासयत. तमना निषेध ४२। नये (एवं बहेव गेविज्जदेवा तहेव अणुत्तरोववाइयावि) से शते २वा अवेय व तेवा अनुत्तरौ५५ति: ५ (नवरं इमं णाणत्त) विशेष मा छे. (संजया चेव) संयत. (जइ सम्मबिट्टि संजतपज्जत्तसंखेज्जवासाउयकम्मभूमगगन्भवतियमणूसे हितो उववति) यहि सभ्यरि पर्यात सध्यात नी मायुवामा भभूमि - मनुष्याथी ५न्न थाय छे. (किं पमत्तसंजयसम्मद्दिट्ठिपज्जत्तपहिं तो,
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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