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________________ प्रमेययोधिनी टीका पद ६ सू.१२ पैमानिकदेवोपपातनिरूपणम् १०९७ संयतसम्यग्दृष्टिपर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ? अप्रमत्तसंयतसम्यग्दृष्टिपर्यातकेभ्यः उपपद्यन्ते, नो प्रयत्तसंयतसम्यग्दृष्टिपर्याप्तकेभ्यः उपपद्यन्ते, अप्रमत्त. संयतसम्यग्दृष्टिपर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते किम ऋद्धि प्राप्तसंयतेभ्यः ? अनृद्धिप्राप्तसंयतेभ्यः उपपद्यन्ते ? गौतम ! द्वाभ्याम् उपपद्यन्ते, द्वारम् ।।स् ० १२॥ टीका-अथ वैमानिकदेवानामुत्पादवक्तव्यतां प्ररूपयितुमाह-वेमाणिया णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति ? हे भदन्त ! वैमानिकाः खलु देवाः केभ्य उपपसंजयसम्महिटिपज्जत्तएहितो अप्पमतसंजय सम्मदिटिपज्जत्तएहितो उववज्जंति ?) क्या प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तकों से अथवा अप्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्नको से उत्पन्न होते हैं ?) गोयमा ! अप्प. मत्तसंजयसम्मदिहिपज्जत्तएहितो उववज्जति पलत्तसंजयसम्मद्दिहिपज्जत्तएहितो उववज्जति) गौतम! अप्रमत्तसंपत सम्मग्दृष्टिपर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं, प्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तकों से नहीं उत्पन्न होते (जइ अप्पमत्तसंजयसम्पदिद्विपज्जत्तएहिंतो उबवजंति) यदि अप्रमत्त सम्यग्दृष्टि पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं (किं इडिपत्तसंजएहितो. अणिपित्तसंजएहितो उववति !) क्या ऋद्विप्राप्त संयतो ले उत्पन्न होते हैं अथवा अनृद्धिमाप्त संयतों से उत्पन्न होते हैं (गोयमा ! दोहितो उववज्जति) गौतम ! दोनों से उत्पन्न होते हैं) द्वार समाप्त । टीकार्थ-अब वैमानिक देवों के उपपात की वक्तव्यता कहते हैंगौतम स्वामी प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! वैमालिक देव किनसे उत्पन्न अप्पमत्तसंजयसम्मदिदिपज्जत्तएहि तो उववज्जंति ?) शुप्रभत्तसयत सभ्यष्टि પર્યાપ્તકેથી અથવા અપ્રમત્ત સંયત સમ્યગ્દષ્ટિ પર્યાપ્તકેથી ઉત્પન્ન થાય છે? (गोयमा ! अप्पमत्तसंजयसम्मदिद्विपज्जत्तएहि तो उववज्जति, नो पमत्तसंजयसम्मदिट्ठि पज्जत्तएहि तो उववज्जति) गीतम ! मप्रभत्तसयत सभ्यष्टि पर्याप्त थी ઉત્પન્ન થાય છે. પ્રમત્ત સંયત સમ્યગ્દષ્ટિ પર્યાપ્તકેથી નથી ઉત્પન્ન થતા. (जइ अप्रमत्तसंजयसम्मदिदि पज्जत्तएहि तो उववज्जति) यहि मप्रमत्त सयत सभ्य २४ट पर्याप्त थी Buन्न थाय छे. (किं इढिपत्तसंजएहितो, अणिढिपत्तसंजएहिं तो उववजंति ?) | ऋद्धिात सयतमाथी यन्न थाय छ अथवा अनृद्धि प्राप्त स यतामाथी ५-1 थाय छ ? (गोयमा ! दोहितो उववज्जति ) गौतम | मन्थी उत्पन्न याय छे. दा२५१ समास. ॥ १२॥ ટીકાથ-હવે વૈમાનિક દેના ઉપપાતની વક્તવ્યતા કહે છે. શ્રી ગૌતમ સ્વામી પ્રશ્ન કરે છે–ભગવન વિમાનિક દેવ કેનાથી ઉત્પન્ન થાય છે? શું म० १३८
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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