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________________ i ૮૪ प्रज्ञापनासूत्रे भागे पञ्च अवतंसकाः प्रज्ञप्ताः, तयथा - अशोकावतंसकः सप्तपर्णावतंसकः चम्पकावतंसकः, चूतावतंसकः, मध्ये अत्र सौधर्मावतंसकः, ते खलु अवतंसकाः सर्वरत्नमयाः अच्छा यावत् प्रतिरूपाः, अत्र खलु सौधर्मदेवानाम् पर्याप्ता. पर्याप्तानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि, त्रिष्वपि लोकस्य असंख्येयभागे तत्र वहवः सौधर्मकदेवाः परिवसन्ति, महर्द्धिकाः यावत् प्रभासयन्तः, ते खलु तत्र स्वेषां • (तैसि णं विमाणा) उन विमानों के (बहुमज्झदेस भागे) बिलकुल मध्य भाग में (पंच) पांच ( वर्डिसया) अवतंसक - श्रेष्ठ (पण्णा) कहे हैं (तं जहा ) वे इस प्रकार ( असोगवार्डसए) अशोकावतंसक (सत्तवण्णव डिसए) सप्तपर्णावतंसक (चंपगव डिसए) चम्पकावतंसक (चूयवर्डिस) आम्रावतंसक (मज्झे इत्थ सोहम्मवर्डिसए) इनके मध्य में सौधर्मावनंसक (ते णं वसिया) वे अवतंसक (सव्वरयणामया) सर्वरत्नमय (अच्छा जाव पडित्वा) स्वच्छ यावत् अतीव सुन्दर (एत्थ णं सोहम्मगदेवाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता) यहां पर्याप्त और अपपर्याप्त सौधर्मदेवों के स्थान कहे हैं (तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे) तीनों अपेक्षाओं से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं (तत्थ णं बहवे सोहम्मगदेवा परिवसंति) वहाँ बहुत-से सौधर्मदेव निवास करते हैं (महिडिया ) महर्दिक (जाब एभासेमाणा ) यावत् प्रकाशित करते हुए (ते णं तत्थ) वे वहां (साणं साणं विमाणावास सय सहस्साणं) ( तेसिणं विमाणानं) ते विभानाना ( बहु मज्झ देसभागे) जिस कुल मध्य लाभां (पंच) यांग (वर्डिसया) व्यवसंत श्रेष्ठ (पण्णत्ता) ह्या छे (तं जहा ) तेथे या अरे (असोगवर्डिसए) अशोडावं तस (सत्तण्णवर्डिस) सात वि स (चंपगवर्डिसए) श्रावतस (चूयवर्डिस) आम्रावतस (मज्झे इत्थ सोहम्मगवर्डिसए) तेभना मध्यमां सौधर्भावित स ( तेणं वर्डिसया) ते अवतंस (सव्य रयणामयो) सर्प रत्नभय ( अच्छा जाव पडरुवा) २१२ यावत् अतीव सुंदर ( एत्थ णं सोहम्मगदेवाणं 'पज्जत्ता पज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता) हि पर्यास अने अपर्याप्त सौधर्भ हेवाना स्थान ह्या छे (तिसुवि लोगस्स असंखेज्जईभागे) त्राणे अपेक्षाओोथी तेथे सोना अस ंच्यातभा लागभi ( तत्थणं बहवे सोहम्मा देव। परित्रसंति) त्यां धा गधा સૌમિક દેવ નિવાસ કરે છે. (महिट्टिया) भद्धि (जाव पभासेमाणा ) यावत् अाशित पुरता ( तेणं तत्थ ) तेथे त्यां (सोणं साणं विमाणावाससयसहस्साणं) पोतपोताना साथी
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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