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________________ अमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२५ सौधर्मदेवस्थानादिकनिरूपणम् ८७३ समरमणीयात् भूमिभागात् यावत् अर्ध्वम् दूरम् उत्प्रेत्य, अत्र खलु सौधर्मोनामकल्पः प्रज्ञप्तः प्राचीनप्रनीनायतः, उदीचीन दक्षिण विस्तीर्णः, अर्द्धचन्द्रसंस्थानसंस्थितः, अर्चिमालाभासराशिवर्णाभः, असंख्येयाः योजनकोटीः, असंख्येयाः योजनकोटिकोटीः आयामविष्कम्भेण असंख्येयाः योजनकोटिकोटीः परिक्षेपेण सर्वरत्नमयः, अच्छो यावत् प्रतिरूपः, तत्र खलु सौधर्मकदेवानाम् द्वात्रिंशद विमानावासशतसहस्राणि भवन्ति इत्याख्यातं, तानि खलु विमानानि सर्वरत्नमयानि, यावत् प्रतिरूपाणि, तेपांश्च विमानानां बहुमध्यदेशऊपर दूर जाकर (एत्थ णं) यहां (सोहम्मे णामं कप्पे पण्णत्ते) सौधर्म नामक कल्प कहा गया है (पाईणपडीणायए) पूर्व और पश्चिम में लम्या (उदीणदाहिणवित्थिन्ने) उत्तर-दक्षिण में विस्तीर्ण (अद्धचंद संठाणसंठिए) अर्ध चन्द्र के आकार का (अच्चिमालिभासरासिवण्णाभे) ज्योतियों की माला तथा दीप्तियों की राशि के समान वर्ण कान्ति वाला (असंखेज्जाओ जोयणकोडीओ) असंख्यात करोड योजन (असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ) असंख्यात कोडाकोडी योजन (आयामविश्वभेणं) लम्बाई-चौडाई वाला (असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं) असंख्यात कोडाकोडी योजन परिधि वाला (सचरयणामए) सर्वरत्नमय (अच्छे जाव पडिरूवे) स्वच्छ यावत् अत्यन्त कमनीय (तत्थ णं) वहां (सोहम्मदेवाणं) सौधर्मक देवों के (बत्तीस विमाणावाससयसहस्सा) बत्तीस लाख विमान (भवंतीति सखायं) हैं, ऐसा कहा है (ते णं भवणा) वे भवन (सव्व रयणामया) सर्चरत्नमय (जाव पडिरूवा) यावत् अत्यन्त सुन्दर है। (पाईण पडीणायए) पूर्व पश्चिमभi ein (उदीणदाहिणवित्थिन्ने) त्तक्षिण भां विस्ती (अद्धचंदसंठाणसंठिए) गयन्द्रना ।।२ना (अच्चिमालिभासरासिवण्णामे) ज्योतिमानी माता तथा सीसियानी शिना समान वन्ति पाणा (असंखेज्जाओ जोयणकोडीओ) मसतण्यात ४२ योन (असंखेज्जाओ जोयणकोडा कोडीओ) सयात डी थान (आयामविक्खं. मेंणं) सा-पाडावा पाय (असंखेज्जाओ जोयणकोडाफोडीओ परिक्खेवेणं) मसाती यासन परिधिमा (सव्वरयगामाप) सवरत्नमय (अच्छे जाव पडिरूवे) २१२७ यावत् अत्यन्त ४भनीय (तत्थणं) त्यां (सोहम्मग देवाणं) सौधम ४ वान (बत्तीसविमाणावाससयसहस्सा) पत्रीस साय विमान (भवतीति मक्खायं) छे, म ४धु छ (तेणं विमाणा) ते विमान (सव्व रयणामया) सव २त्नमय (जाव पडिरूवा) यावत् अत्यन्त सुन्४२ छ. प्र० ११०
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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