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________________ प्रमेयवोधिनी टीका प्र. १ सू. ६ जीवादीनां वर्णादिना परस्पर संबेधनिरूपणम् ६३ ये वर्णतः शुक्लवर्णपरिणतास्ते सुरभिगन्धपरिणता अपि १, दुरभिगन्धपरिणता अपि २ । रसतस्तिक्तरसपरिणता अपि १, कटुकरसपरिणता अपि २, कषायरसपरिणता अपि ३, अम्लरसपरिणता अपि ४, मधुररसपरिणता अपि स्पर्शतः कर्कशस्पर्शपरिणता अपि १, मृदुकस्पर्शपरिणता अपि २, गुरुकस्पर्शपरिणता अपि ३, लघुकस्पर्शपरिणता अपि ४, शीतस्पर्शपरिणता अपि ५, उष्णस्पर्शपरिणता अपि ६, स्निग्धस्पर्शपरिणता अपि ७, रूक्षस्पर्शपरिणता अपि (जे) जो (वष्णओ) वर्ण से ( सुकिल्लवण्णपरिणया) श्वेतवर्णपरिणमन वाले हैं (ते) वे (गंधओ) गंध से (सुभिगंधपरिणया वि) सुगंधपरिणमन वाले भी हैं (दुभिगंधपरिणया वि) दुर्गन्ध परिणमन वाले भी हैं। (रसओ) रस से (तित्तरस परिणया वि) तिक्तरस परिणमन वाले भी हैं ( कडुयरस परिणया वि) कटुक रस परिणमन वाले भी हैं (कसाय रस परिणया वि) कषाय रस परिणमन वाले भी हैं (अंबिलरसपरिया वि) आम्लरम परिणमन वाले भी हैं (महुररसपरिणया वि) मधुररस परिणमन वाले हैं । (फासओ) स्पर्श से (कक्खडफासपरिणया वि) कर्कश स्पर्श परिमन वाले भी हैं (मउयफास परिणया वि) मृदुस्पर्श परिणमन वाले भी हैं (गरुयफास परिणया वि) गुरुस्पर्श परिणमन वाले भी हैं (लहुय फास परिणया वि) लघुस्पर्शं परिणमन वाले भी हैं (सीयफास परिया वि) शीतस्पर्श परिणमन वाले भी हैं (उसिणफास परिणया वि) उष्णस्पर्श परिणमन वाले भी हैं (द्धिफासपरिणया वि) स्निग्ध (जे) ले (वण्णओ) वर्णुथी (सुक्विण्ण परिणया वि) श्वेत वर्षा परिणाम वाणां छे (ते) तेथे (गंधओ) गंधथी (सुभिगंधपरिणया वि) सुगंध परिणाम वाणांच छे (दुभिगंधपरिणया वि) दुर्गध परिणाम वाणां यछे (रसओ) रसथी (तित्तरसपरिणया वि) तित रस परिणाम वाणां यशु छे ( कडुयरसपरिणया वि) ४डवा रसना परिणाम वाणां यछे (कसायरसपरिणया वि) प्रुषाय रस परिणाम वाणां पशु छे (अंबिलरसपरिणया वि) माटा रस परिशुभ वा यछे ( महुररसपरिणयावि) भधुर रस परिणाम वाणां (फासओ) स्पर्शथी (कक्खडफासपरिणया वि) ईश स्पर्श परिणामवाणां भए छे (मउयफासपरिणया वि) भज स्पर्श परिणाभवाणां पशु छे (गुरुयफासपरिणया वि) गु३ स्पर्श परिणाम वजा भए। छे ( लहुयफा सपरिणया वि) लघुस्पर्श परिणाम वाणां पशु छे ( सीयपासपरिणया वि) शीत स्पर्श परिणाम
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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