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________________ ७९४ प्रहापनास पीठधारिणो विचित्र हस्ताभरणः, विचित्रमालामौलि मुकुटाः, कल्याणकप्रवरवसुपरिहिताः, व त्याणक प्रवरमाल्यानुले पन्धराः, भारदरवोन्दयः, प्रलम्बग्नवनमालाधराः, दिध्ये न दणे न, दिव्येन गन्धेन, दिध्वेन स्पर्दैन, दिव्येन संहननेन, दिव्येन संस्थानेन, दिव्यया ऋद्धचा, दिव्ययायुत्या, दिव्यया प्रभया, दिव्यया छायया, दिव्येन अर्चिपाः, दिव्येन तेजसा, दिव्यया लेश्यया दशदिशः उद्योतयन्तः, प्रभासयन्तस्ते खलु तत्र स्वेपाम् स्पेपाम् असंख्येय करने वाले (विचित्तहत्थाभरणा) हाओं में विचित्र भूषण पहनने वाले (विचित्तमालामउली) विचित्र आला वाले मुकुट के धारक (कल्लाणग पवरवत्थपरिहिया) काल्याणकारी उत्तम वस्त्र पहने हुए (कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणधरा) कल्याणकर माला एवं अनुलेपन को धारण करने वाले (भासुरवोंदी) देदीप्यमान शरीर वाले (पलंबवणमालधरा) लम्बी वनमाला पहनने वाले (दिवेणं वणेणं) दिव्य वर्ण से (दिवेणं गंधेणं) दिव्य गंध से (दिव्वेणं फासेणं) दिव्य स्पर्ग से (दिव्वेणं संघयणेणं) दिव्यणं संहनन से (दिव्वेणं संठाणेणं) दिव्य संस्थान से (दिवाए इड्डीए) दिव्य ऋद्धि' से (दिवाए जुईए) दिव्य द्युति से (दिव्याए पभाए) दिव्य प्रभा (से दिव्याए छायाए) दिव्य कान्ति से (दिवाए अच्चीए) दिव्य ज्योति से (दिव्वेणं तेएणं) दिव्य तेज से (दिवाए लेस्साए दिव्य लेश्या से (दस दिसाओ) दशों दिशाओं को (उज्जोवेमाणा) उद्योतित करते हुए (पभासेमाणा) प्रकाशित करते हुए (तेणं) वे (तत्थ) वहां कन्नपीठधारी) सुन्४२, at तथा 3थगाने साता पी8 नामना माभूषणाने धारण ४२वावा (विचित्तहत्थाभरणा) डायामा वियित्र भूषा धारा ४२वावा (विचित्तमालामउली) विचित्रमाणावा भुगटन। घा२४ (कल्लाणगपवरवत्थपरिहिया) ४८यार उत्तम पर था२९५ ४२सा (कल्लाणग पवर मल्लाणुलेवणधरा) ४या ४२ भासा तेभर मनुलेपनने घा२७ ४२वाणा (भासुरवोंदी) हीप्यमान शरी२वा (पलंबवणमालधरा) सामी वनमा ५१२ना। (दिव्वेणं वण्णेणं) दिव्य व थी (दिव्वेणं गंघेणं) दिव्य धथी (दिव्वेणं फासेणं) हिव्य २५ थी (दिव्वेणं संघयणेणं) दिव्य सउननथी (टेड) (दिव्वेणं संठाणेणं) हव्य संस्थानथी (दिव्वाए इंड्ढीए) दिव्य ऋद्धिश्री (दिव्वाए जुइए) हिव्यतिथी (दिव्याए पभाए) हिव्यप्रसाथी (दिव्वाए छायाए) दिव्य तिथी (दिव्वाए अच्चीर) हिव्य न्यतिथी (दिव्वेणं तेएणं) दिव्य तेथी (दिव्वाए लेस्साए) हिव्य वेश्याथी (दस दिसाओ) शे हिशमान (उज्जोवेमाणा) प्रशित ४२ता (पभासेमाणा) प्रधातित ५२ता (तेणं) ते (तत्थ) त्या (साणं साणं) पात
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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