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________________ प्रमेयथोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२१ वानव्यन्तरदेवानां स्थानानि ७९३ धारिणः, नानाविधवर्णरागवरवस्खललं तचित्रचिल्ललगनिवसनाः, विविधदेशीयनेपथ्यगृहीतवेपाः, प्रमुदितकन्दर्पकलहकेलिकोलाहलप्रियाः, हासबोलबहुलाः, असिमुद्गरशक्तिकुन्तहस्ताः, अनेकमणिरत्नविविधनियुक्तनिचित्रचिह्नगताः, महद्धिकाः, महाद्युतिकाः, महायशसः, महाबलाः, महानुभागाः, महासौख्याः, हारविराजितवक्षसः, कटकत्रुटितस्तम्भितशुजाः, संगतकुण्डलमृष्टगण्डस्तलकर्णरूप और देह के धारक (णाणाविहवण्णरागवरवत्थललंतचित्तचिल्ललगनियंसणा) नाना प्रकार के वर्गों वाले, श्रेष्ठ, विचित्र चपकते वस्त्रों के धारक (विविहदेखिनेवस्थगहियवेला) विविध देशों के वेष भूषा धारण करने वाले (पक्ष्यकंदपकलहकेलि कोलाहलप्पिया) प्रसन्न तथा कंदर्प-कलह-केलि-कोलाहल प्रेमी (हालबोलबहुला) हास्य और बोल-कोलाहल की बहुलता वाले (अलिमुग्गर सत्तिकुंतहत्था) हाथों में असि, मुद्गर, शक्ति तथा भाला वाले (अणेग मणिरयण विविहनिज्जुत्तविचित्तचिंधगया) अनेक और विविध मणियों तथा रत्नों के विचित्र चिह्न वाले (महिड्ढिया) महान ऋद्धि के धारक (महज्जुइया) महान् कान्ति वाले (महायसा) महान् यश वाले (महाबला) अति बलवान् (माणुमागा) महाप्रभाव वाले (महासुक्खा) महान् सुखयुक्त (हारविराइयवच्छा) हार से सुशोभित वक्षस्थल वाले (कडयतुडिय थंभियभुया) कटकों और त्रुटितों से स्तब्ध भुजा वाले (संगयकुंडलमट्टगंडथलकन्नपीठधारी) सुन्दर कुडलों तथा गंडस्थलों को भर्षण करने वाले कर्णपीठ नामक आभूषणों को धारण मन इन पा२१ ४२ना। (णाणाविहवण्णरागवरवत्थललंतचित्तचिल्लल्लगनि नियंसणा) नाना प्रधान व वाण, श्रेष्ठ, वियत्र यमता पखोना था२४ (विविहदेसि नेवत्थ गहियवेसा) विविध शानी वेष भूषाधारण ४२नारा, (पमुइय कंदप्पकलहकेलिकोलाहलप्पिया) प्रसन्न तथा ४१५४ी-सिसाडस प्रिय (हासबोलवहला) हास्य मने मासना वासना प्रेमी (असिमुग्गरकुंतहत्या) डायामा मसि, महार, शत, तथा arain (अणेगमणिरयणविविहनिज्जुत्त विचित्त चिंधगया) मने मने विविध भयो तथा २त्नाना वियित्र शिवाजी (महिडढिया) महान ३द्विना पा२४ (महज्जुइया) महान् अन्तिवा (महायसा) महान यशवा (महाणुमागा) मा प्रभावामा (महा सुक्खा) महान सप यरत हारविराइय वच्छा) डाकथा सुशामत पक्षस्थण पाणा (कडपतुडिय भिय भयो) । मन त्रुटितथा स्तम्य सुनसावा (संगतकुडलमगंडयल प्र० १००
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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