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________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.१८ असुरकुमारदेवानां स्थानानि ६९७ रौष्ठौ, पाण्डुरशशिशकल विमलनिर्मलदधिधनशखगोक्षीरकुन्ददकरजोमृणालिकाधवलदन्तश्रेणी, हुतवहनिर्मातधौततप्ततपनीयरक्ततलतालुजिह्वौ, अञ्जनधनकृष्णरुचकरमणीयस्निग्धवेशौ, वामे कुण्ड लधरौ, आर्द्रचन्दनानुलिप्तगात्रौ, ईपच्छिलिन्ध्रपुष्पप्रकाशानि असंकलिष्टानि सूक्ष्माणि वस्त्राणि वराणि, प्रपरिहितौ, वयञ्च प्रथम समतिक्रान्तौ, द्वितीयञ्चासंप्राप्तौ, भद्रे यौवने वर्तमानौ, तलभङ्गकत्रुटितप्रवरभूपफलसंनिहाहरोहा) (पुष्ट मूंगा तथा विस्मफल के समान अधरोष्ठ वाले (पंडुरससिसगलविमलनिम्मलदहिघणसंखगोक्खीरकुंददगरयमुणालि - याधवलदंतसेढी) श्वेत तथा विलल एवं निर्मल चन्द्रखण्ड, जमे हुए दही, शंख, गाय के दूध, कुन्द, जलकण, भृणालिका के समान श्वेत दन्तपंक्ति वाले (हुयवहनिद्रुतधोयतत्ततवणिज्जरत्ततलतालुजीहा) आग में तपाकर धोये हुए तप्त तपनीय के समान लाल तलवों। तालु तथा जिह्वा वाले (अंजणघणकलिणगरुयगरमणिज्जणिद्ध केसा) अंजन तथा मेघ के समान काले एवं रुचक रत्न के समान रमणीय चिकने केशों वाले (वामेयकुंडलधरा) बायें कान में कुंडल धारण करने वाले (अद्दचंदणाणुलित्तगत्ता) गीले चंदन से लिप्त शरीर वाले (ईसिंसिलिंधपुप्फपगासाइं). किंचित् शिलिन्ध्र पुष्प के समान लाल वर्ण वाले (असंकिलिट्ठाई) क्लेश न उत्पन्न करने वाले (सुहुमाइ) बारीक (बत्थाई) वस्त्रों को (पवर) श्रेष्ठ (परिहिया) पहने हुए (क्यं च पढम) प्रथम वय को (समइक्कंता) पार किये हुए (विइयं तु असंपत्ता) दूसरी वय को अप्राप्त (जोव्वणे) यौवन में (वट्टमाणा) वर्तमान (तलभंगयभूसा-सासरत्न तथा ५ जना समान अध।४yi (पंडुरससिसगलपिमल निम्मलदहिघणसंखगोक्खीरकुंददगरय मुणालिया धवलदंतसेढी) श्वेत तथा विभy तमा नि, यन्द्रम, कमेडी , , आयनु , हुन्। (भा ). समि भृणालिन समान वेतन तियो ! (हुयवहनिद्रंतधोयतत्ततवणिज्जरत्ततलतालुजीहा) मागमा तावीन घायदा सुवर्णसमान पानातीय, ताg तथा हावा (अंजणघणकसिणगरुयगरमणिज्जणिद्धकेसा) RA- तथा મેઘના સમાન કાળા તેમજ રેચક રત્નના સમાન રમણીય ચિકણા સુંવાળા वाण (वामेयकुंडलधरा) अ॥ ४ानमा ४० घा२९४२।२। (अद्दचंदणाणु लितगत्ता) सीसा यन्दनथी सिस शरीरात (ईसिसिलिंधपुप्फपगासाई) था। शिलान्, ०५ना समान सपना (असंक्रिलिट्ठाई) ४सेश उत्पन्न नही ४२ना२। (सुहुमाइ) मारी४ (वत्थाइं) पत्रोन (पवर) श्रेष्ठ (परिहिया) पाडेरेसा (वयं च पढम) प्रथमवयना (समइक्कता) भा२४२।येसा (बिइयं तु असंपत्ता) मायने मप्रास प्र० ८८
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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