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________________ ६७६ पिनासूत्र कल्याणकप्रवरमाल्यानुलेपनधराः भासुरवोन्दि प्रलम्बमानमालाधराः, दिव्येन वर्णेन, दिव्येन स्पर्शेन, दिव्येन संहननेन, दिव्येन संस्थानेन, दिव्यया ऋद्धया, दिव्यया शुत्या, दिव्यया प्रभया, दिव्यया छायया, दिव्येन अचिपा, दिव्येन तेजसा, दिव्यया लेश्यया दशदिश उद्योतयन्तः प्रभासयन्त स्ते खलु स्वेषां स्वेषां भवनावासशतसहस्रणां, स्वासां स्वासां सामानिकसाहस्रीणां स्वेषां के धारक (विचित्तहत्याभरणा) हाथों के विचित्र आभरण वाले (विचित्तमालामउलिमउडा) मस्तक पर विचित्र पुष्पमाला तथा मुकुटवाले (कल्लाणग पवरवत्थपरिहिया) कल्याणकारी उत्तम वस्त्र धारण किये हए (कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणधरा) कल्याणकारी श्रेष्ठ माला एवं अनुलेपन के धारक (भासुरबोंदी) देदीप्यमान शरीर वाले (पलंबवणमालधरा) लंबी वनमाला धारण करने वाले (दिव्येणं वन्नेणं) दिव्य वर्ण से (दिव्वेणं गंधेगं) दिव्य गंध से (दिश्वेगं फासेगं) दिव्य स्पर्श से (दिव्वेणं संघयणेणं) दिव्य संहनन से (दिव्वेणं संहाणेणं) दिव्य संस्थान आकृति से (दिव्याए इडीए) दिव्य ऋद्धि से (दिवाए जुईए) दिव्य कान्ति से (दिव्वाए पभाए) दिव्य प्रभा से (दिव्वाए छायाए) दिव्य शोभा से (दिव्वाए अच्चीए) दिव्य ज्योति से (दिव्वेणं तेएणं) दिव्य तेज से (दिव्याए लेसाए) दिव्य लेश्या से (दस दिसाओ) दशों दिशाओं -को (उज्जोवेमाणा) प्रकाशित करते हुए (पभासेमाणा) शोभित करते हुए (तेगं) वे भवणवासी देव (तत्थ) वहाँ (साणं साणं) अपने अपने (भवणावोससयसहस्साणं) लाखों भवनावासों का (साणं साणं सामा४२ना। (विचित्तहत्थाभरणा) याना विचित्र माला (विचित्तमाला मउलिमउडा) भरत: ५२ वियित्र ५०५भा तथा भुटवा (कल्लाणग पवर वत्यपरिहिया) ४ारी उत्तम पत्र पा२१ ४२वा (कल्लाणग पवरमल्लाणु लेवणधरा) ४८या री श्रेष्ठ मादा तेभर मनुखेपनना घा२४ (भासुरवोदी) हीप्यमान शरी२१(पालंबवणमालधरा) सinी वनमान धारए ४२॥२॥ (दिव्वेणं वन्नेणं) दिया थी (दिव्वेणं गंवेणं) ६०य थी (दिव्वेणं फासेणं) हिव्य २५शथी (दिव्वेणं संघ यणेण) दिव्य सननथी (दिव्वेणं संठाणेणं) दिव्य यातिथी (दिवाए इड्डीए) हिव्य३द्धिया (दिवाए जुईए) हिव्यतिथी (दिव्याए पभाए) दिव्यप्रमाथी (दिव्वाए छायाए) हि०५ छायाथी (दिव्याए अञ्चीए) हिव्य शमाथी ज्योतिथी (दिव्वेणं तेएणं) हिय तेथी (दिव्याए लेसाए) दिव्यश्याथी (दस दिसाओ) हरी हिशासाने (उज्जोवेमाणा) प्रशित ४२ना। (पमासेमाणा) शालित ४३ २७सा (तेणं) ते भवन पासीहे। (तत्थ) त्या (साणं साणं) पात
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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