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________________ ५९६ प्रशापनासूत्र दरवनस्पतिकायिका वर्तन्ते, तथा 'अहोलोए'-अधोलोके पायालेसु'-पातालेषु 'भवणेसु'-भवनेषु 'भवणपत्थडेसु'-भवनप्रस्तटेपु तथा 'उडुलोए'-ऊर्श्वलोके'कप्पेसु'-कल्पेषु 'विमाणेसु'-विमानेषु वेयकादिषु 'विमाणावलियामु'-विमानावलिकासु 'विमाणपत्थडेसु'-विमानप्रस्तटेपु चादरपर्याप्तवनस्पतिकायिका वर्तन्ते तथा-तिरियलोए-तिर्यग्लोके अगडेसु-अगढेषु अवटेपु-कूपेषु, 'तडागेसु'-तडागेषु 'नदीसु-नदीपु-गङ्गासिन्धुप्रभृति नदीषु 'दहेसु'-हूदेपु-पद्मादिहदेपु-वावीसु' -वापीपु, 'पुक्खरिणीसु'-पुष्करिणीपु 'दीहियामु'-दीपिकासु गुंजालियामु'गुञ्जालिकासु-लघुदीर्घिकासु 'सरेसु'-सरःसु 'सरपंतियासु'-सर पङ्क्तिकामुपूर्वोक्तरूपायु 'सरलरपंतियासु'-सरःसर पक्तिकासु-पूर्वप्रतिपादित रूपामु 'विलेसु'-विलेषु 'विलपंतियासु'-विलपङ्क्तिकानु-पूर्वप्रतिपादितरूपासु ‘उज्झरेसु' उज्झरेषु-गिर्यम्भसां प्रसवेषु 'निज्झरेगु-निर्झरेपु-पूर्वोक्तरूपेषु 'चिल्ललेसु' -चिल्लकेपु-उपर्युक्तरूपेषु 'पल्ललेसु'-पल्वलेपु 'वप्पिणेमु'-वणेपु-क्षेत्रेषु 'दीवेसु'-द्वीपेषु 'समुद्देसु'-समुद्रेषु किमविकम् ? 'सव्वेसु चेव जलासएमु'-सर्वेषु चैव में बादर वनस्पतिकायिक जीव होते हैं । तथा अधोलोक में पातालों में, भवनों में, भवनों के पाथडों में, ऊर्ध्वलोक के अन्दर सौधर्म आदि कल्पों में विमानावलियों में, विमानों के पाथडों में यादर वनस्पतिकायिक जीव होते हैं । ति लोक के अन्दर कूपों में, तडागों मे , गंगा सिन्यु आदि नदियों में, पद्म आदि हुदों में, वावड़ियों में, पुष्करिणियों में, दीर्घिकाओं में, गुंजालिकाओं में, सरोवरों में, सरोवरों की पंक्तियों अर्थात् पंक्तिबद्ध सरोवरों में, सर-सरपंक्तियों में अर्थात् पंक्तिवद्ध बने हुए ऐसे सरोवरों में जिनमें नाली के द्वारा पानी का संचार होता है, बिलों में, विलपंक्तियों में, उज्झरों में (पहाडी पानी बहने के स्थानों में) झरनों में, चिल्लकों (गडहों) में, पोखरों में, क्षेत्रों मे, द्वीपों में, समुद्रों मे, अधिक क्या कहा जाय-सभी जलाशयों અધલોકમાં, પાતાલોમાં ભવનોમા, ભવનના પરથારમાં, ઉર્વિલોકની અન્દર સૌધર્મ આદિ કમાં વિમાનમાં વિમાનાવલિમાં, વિમાનના પરથારેમા બાદરવનસ્પતિકાયિક જીવ થાય છે. તિર્યલોકની અંદર કૃપમાં તલામાં, ગંગા સિબ્ધ આદિ નદીમાં પદ્મ આદિ હદમાં, વાવડિમાં પુષ્કરણિયેમાં દીધિ કાઓમાં, શું જાલિકાઓમાં, સરોવરમાં, સર–સર પંક્તિમાં અર્થાત્ પંકિત બદ્ધ બનેલા એવા સરોવરમાં કે જેમાં નળી દ્વારા પાણીને સંચાર થાય છે. બીલોમાં, બિલપંકિતમાં, પુષ્કરોમાં, (પહાડી પાણી વહેવાના સ્થાનમાં) ઝરણાઓમાં, ચિલ્લકે મા, પુષ્કરમાં, ક્ષેત્રમા, દ્વીપમા, સમુદ્રોમાં, વિશેષ શું
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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