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टीका प्र. पद १ सू २७ समैश्चतुरिन्द्रियजीवनिरूपणम्
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पत्राः, चित्रपक्षाः, विचित्रपक्षाः, ओहाञ्जलिकाः, जलचारिकाः, गम्भीराः, नीनिकाः, तन्तवः, अक्षिरोटाः, अक्षिवेधाः, सारङ्गाः, नूपुराः, दोलाः, भ्रमराः, भरिलयः, जरुला, तोट्टाः, वृश्चिकाः, छगणवृश्चिकाः प्रियङ्गालाः, कनकाः, गोमयकीटाः, ये चान्ये तथा प्रकाराः सर्वे ते संमूच्छिमा नपुंसकाः । ते समासतो द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- पर्याप्तकाश्च, अपर्याप्तकाश्च । एतेषां खलु एवमादिकानां चतुरिन्द्रियाणां पर्याप्तापर्याप्तानां नव जातिकुलकोटियोनिप्रमुखशतसहस्राणि भवन्तीत्याख्यातम् । सैपा चतुरिन्द्रियसंसारसमापन्न जीवप्रज्ञापना ||२७||
टीका-अथ चतुरिन्द्रि सारसमापन्नजीवप्रज्ञापनां प्ररूपयितुमाह- 'से किं कीडा ( तहा पयंगे य) और पतंगा (ढंकुण) ढंकुण (कुक्कड) कुक्कड (कुक्कुह ) कुक्कुह (नंदावत्ते य) और नन्द्यावर्त्त (सिंगरड ) श्रृं गिरट
( किण्हपक्खा) कृष्णपक्ष (नीलपक्खा) नीलपक्ष (लोहियपक्खा) लोहितपक्ष (हालिद्दपक्खा) पीतपक्ष (सुकिल्लपक्ष) श्वेतपक्ष (चित्तपक्खा) चित्रपक्ष (विचित्तपक्खा) विचित्रपक्ष (ओहजलिया) ओहाञ्जलिक (जलचरिया) जलचारिक (गंभीरा) गंभीर (णीणिया) नीतिका (तंतवा) तन्तव (अच्छिरोडा) अक्षिरोट (अच्छिवेहा) अक्षिवेध (सारंगा ) सारंग (नेउरा ) नूपुर ( दोला) दोला (अमरा) भ्रमर ( भरिली) भरिली (जरुला) जरुला (तोहा) तोह (विंछुया) विच्छू (पत्तविच्छुया) पत्रवृश्चिक ( छाण विच्छुया) छाणे का विच्छू (जलविच्छुया) जल-विच्छू, (पियंग (ल) प्रियंगाल (कणगा) कनक (गोमय कीडा) गोबर का कीडा, इन अन्धिक आदि चतुरिन्द्रिय जीवों को देशविशेष से और लोक से समझ लेना चाहिए । इसी प्रकार जो अन्य प्राणी हैं उन्हें भी चतुरिन्द्रिय समझना चाहिए | ||२७||
(किह पक्खा)
टीकार्थ- ये सभी चौइन्द्रिय जीव संमूर्छिम और नपुंसक होते हैं । पक्ष (नीलपक्खा) नीसपक्ष (लोहियपक्खा) सोहित पक्ष (हालि पक्खा) पीत पक्ष (सुकिल्लपक्खा) श्वेत पक्ष (चित्तपक्खा) चित्र पक्ष (विचित्तपक्खा) विचित्र पक्ष (ओहंजलिया) गोहांसि (जलचरिया ) ४सयारिङ (गंभीरा) गंभीर (णीणिया) नीनिअ ( तन्तवा) तन्तव (अच्छिरोडा) अछिरोड (अच्छिवेहा) अक्षिवेध (सारंगा ) सारग (नेउर) नूपुर (दोला ) होता (भमर) लभरो (भरिली) लरिती (जरुला ) ४३सा (तोहा) तोह (विंछुया) विछी (पत्तविंछया) पत्र वृश्चिक (छाणविच्छुया) छ। वृश्चि (जलविच्छुया) ४५ वृश्चि (पियंगाल) प्रिय गास ( कणगा ) १२४ ( गोमेय कीडा) छानो डीओ ॥ सू. २७ ॥
ટીકા—આ આધિક વિગેરે ચતુરિન્દ્રિત જીવાને દેશવિશેષે કરીને તથા