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प्रशापनासूत्र मूलम्-से किं तं चउरिदियसंसारसमावन्नजीवपाणवणा? चउरिदिय संसारसमावन्नजीवपण्णवणा अणेगविहा पपगत्ता, तं जहा-अंधिय पत्तिय मच्छिय, मसगा कीडे तहा पयंगे या ढंकुण कुकड कुक्कुह, नंदावत्ते य सिंगिरडे ॥१॥ किण्हपत्ता जीवपत्ता
लोहियपत्ता हारिदपत्ता सुकिल्लपत्ता चित्तपक्खा विचित्तपक्खा ___ओहंजलिया जलचारिया गंभीरा णीणिया तंतवा अच्छिरोडा
अच्छिवेहा सारंगा नेउरा दोला भमरा भरिली जरुला तोटा विच्छया पत्तविच्छ्या छाणविच्छ्या जलविच्छ्या पियंगाला कणगा गोमयकीडा, जे यावन्ने तहप्पगारा, सव्वे ते संमुच्छिमा नपुंसगा। ते समासओ दुविहा पण्णता, तं जहा,-पज्जत्तगा य, अपज्जत्तगा य । एएसि णं एवमाइयाणं चउरिंदियाणं पजत्तापजत्ताणं नवजाइ कुलकोडि जोणिप्पमुह सयसहस्साई भवंतीति मक्खायं । से तं चउरिदियसंसारसमावन्नजीवपण्णवगा।सू.२७॥
छाया-अथ का सा चतुरिन्द्रियसंसारसमापन्नजीवप्रज्ञापना ? चतुरिन्द्रियसंसारसमापन्नजीवप्रज्ञापना अनेकविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-'यन्धिकाः, पत्रिकाः, मक्षिनः, मशकाः, कीटाः, तथा पतंगाश्च । ढंकुणाः, कुकहा कुक्कुडा नन्द्या. वर्ताश्व शृङ्गिरटाः ॥१॥ कृष्णपत्राः, नीलपत्राः, लोहितपत्राः, हारिद्रपत्राः, शुक्ल. __ शब्दार्थ-(से किं तं चउरिंदियसंसारसमापन्नजीवपण्णवणा?) चौइन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना क्या है ? (अणेगविहा पण्णत्ता) अनेक प्रकार की कही है (तं जहा) वह इस प्रकार है-(अंधिय) अधिक (पत्तिय) पत्रिक (मच्छिय) मक्खी (मसग) मच्छर (कीडे)
साथ-(से कि तं चउरि दिय संसारसमावन्नजीवपण्णवणा) यतुरिन्द्रियसंसार समापन्न वानी प्रज्ञापन शु छ ? (चउरिदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा) यतुरिन्द्रिय संसार समापन्न वानी प्रज्ञापन। (अणेगविहा पण्णत्ता) भने ४२नी ४ी छे (तं जहा) ते २मा शते ___ (अंधिय) मधि४ (पत्तिय) पत्रि४ (मच्छिय) भांजी (मसग) भ२७२ (कीडे) जी (तहा पयंगेय) ने पतीया (ढकुण) १ (कुक्कड) ४१ (कुक्कुह) ४५ (नंदावत्तेय) न धावत (सिंगिरड) श्रृंगी२७