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________________ प्रमेयवोधिनी टीका प्र. पद १ सू.२६ समेदत्रीन्द्रियजीवनिरूपणम्_३५१ कुलानि सम्भवन्ति इत्युपपद्यन्ते द्वीन्द्रियाणां सप्तलक्षजातिकुलकोटीनाम् प्रकृतमुपसंहरमाइ-'से तं बेइंदिय संसारसमावन्नजीवपन्नवणा'-सा एषा द्वीन्द्रिय संसारसमापन्नजीवप्रज्ञापना ॥सू० २५॥ : मूलम्-से किं तं तेइंदिय संसारसमावन्नजीवपन्नवणा? तेइंदियसंसारसमावन्नजीवपन्नवणा अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-ओवइया रोहिणिया कुंथू पिवीलिया उसगा उद्देहिया उक्कलिया उपाया उप्पडा तणहारा कट्टाहारा मालुया. पत्ताहारा, तणबेंटिया पत्तवेंटिया पुप्फ.टिया फलबेंटिया तेबुरणमिजियातओसिमिजिया कप्पासट्रिमिजिया हिल्लिया झिल्लिया झिंगिरा किंगिरिडा बाहुया लहुया सुभगा सोवत्थिया सुयबेटा इंदकाइया इंदगोवया तुरुतुंबगा कुत्थलबाहगा जृया हालाहला.. पिसुया सयवाइया गोम्ही हस्थिसोंडा, जे यावन्ने तहप्पगारा, सवे ते संमुच्छिमा नपुंसगा। ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-पजत्तगाय अपज्जत्तगा य। एएसि णं एवमाइयाणं, तेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं अट्टलक्ख जाइकुलकोडि जोणिप्पः मुहसयेसहस्साई भवंतीति मक्खायं। से तं तेइंदियसंसार--- समावन्न जीवपन्नवणा ॥सू० २६॥ , छाया-अथ का सा त्रीन्द्रियसंसारसमापन्नजीवप्रज्ञापना ? श्रीन्द्रिय प्रकार एक योनि में भी अवान्तर भेद होने से अनेक योनिप्रवाह जाति कुल होते हैं, अतएव द्वीन्द्रिय जीवों के सात लाख जाति कुलकोटियां हो सकती हैं । अब प्रस्तुत का उपसंहार करते हैं-यह वीन्द्रिय संसारसमापन्न जीवों की प्रज्ञापना हुई ॥२५॥ ..शब्दार्थ-(से.किं तं तेइंदिय संसारसमापन्न जीवपन्नवणा?) अब - योनिमा ५५ सपान्तर में थवाथी मेने योनि पान्नति કુલ થાર્ય છે. તેથીજ દ્વીન્દ્રિય જીવોની સાત લાખ કુલ કેટી થઈ શકે છે d, હવે પ્રસ્તુતને ઉપસંહાર કરે છે–આ હીન્દ્રિય સંસાર સમાપન્ન જીની प्रज्ञापना २७. सू. २५ । । शहाथ-(से किं-तं तेइंदियसंसारसमोवन्नजीवपन्नवणा ?) व श्रीन्द्रिय
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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