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________________ ३५२० प्रतपिनास संसार समापन्नजीवप्रज्ञापना अनेकविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा - औपयिकाः, रोहि णिका:, कुन्थवः, पिपीलिकाः, उद्देशकाः, उद्देहिकाः, उत्कलिकाः, उत्पादां:) : उत्पटाः, तृणाहाराः, काष्ठाहाराः, मालुकाः, पत्रहाराः, तृणवृन्तिकाः, पत्र वृन्तिकाः, पुष्पवृन्तिकाः, फलधृन्तिकाः, वीजवृन्तिकाः, तेवुरणमिञ्जिकाः, कार्पासास्थिमिञ्जिकाः. डिल्लिका:, झिल्लिकाः, झिंगिराः, किंगिरिटा, बाहुका लघुकाः, सुभगाः, सौवस्तिकाः, शुरुवृन्ता:, इन्द्रकायिकाः, इन्द्रगोपकाः, तु तुम्बेकाः, कुस्थलवाहकाः, यूकाः, हालाहलाः, पिशुकाः, शतपादिकाः, गोम्मयः, त्रीन्द्रिय संसारी जीवों की प्रज्ञापना क्या है ? (अणेगविहा पण्णत्ता) अनेक प्रकार की कही गई है (तं जहा) वह इस प्रकार है (ओवइया) औपयिक (रोहिणिया) रोहिणिक (कुंधू) कुंथुक (पिवीलिका) पिपीलिका चीटीं (उसगा) उद्देशक (उद्देहिया) उदेही (उक्कलिया) उत्कलिका ( उप्पया) उत्पाद ( उपडा) उत्पट (तणहरा) तृणाहार (कट्टहारा ) काष्ठाहार (मालुया) मालुका (पत्ताहारा ) पत्राहार ( तणवेंटिया) तृणवृन्तिक ( पत्तयेंटिया) पत्रवृत्तिक (पुष्पवेंटिया) पुष्पवृन्तिक (फलयेंटिया) फलवृत्तिक (बीयबेटिका) वीजवृन्तिक ( तेवुरणमिंजिया) तेरणमिजिक (तओसिमिर्जिया) त्रपुषीमिंजिक (कप्पासहिमिंजिया) कार्पासास्थि: मिजिक (हिल्लिया) हिल्लिक (झिल्लिया) झिल्लिक (झिंगिरा) झींगुरु (fififiडा) किंगरट (वाहुया) बाहुक ( लहुया) लघुक (सुभगा) सुभग (सोवत्थिया) सौवस्तिक (सुयधेंटा) शुकवृन्त (इंदकाइया) इन्द्रकायिक ( इदगोवा) इन्द्रगोप (तुरुतुंबगा) तुरुतुम्बक (कुच्छलवाहगा) असोरी लवोनी अज्ञाना शुं શ્રીન્દ્રિય સ’સાર - સમાપન્ન જી प्रज्ञापना (अणेगविहा पन्नत्ता) भने प्रभारनी उडेसी छे (तं जहा) तेथे मारे छे (ओवइया) औपयि४ (रोहि-णियाँ) शडिषि (कुथू) युवा (पिवीलिया) चिपीसीओ-डीडी (उद्देसगो) बुद्ध, शे (उद्देहिया) हेडी (उक्कलियां) उत्सा, (उप्पाया) उत्पाes (उप्पडा) उत्पट (तणाहारा) तृथाद्धार (कट्टाहारा) अष्टांडार (मालुया) भासुंर (पत्ताहारा ) पत्राहार (तणबेटियां) तृणुवृन्ति (पत्तवे टिया) पत्रवृत्ति (पुप्फवे टिया) पुष्पवृत्ति (फलब्रेटिया) इसवृति४ (बीयवेंटिया) मी वृत्तिः (त बुरगमिंजिया) तेषुरभि४. (तओ- सिमिंजिया) त्रयुपी भनि= (कम्पासट्ठिमि जिया) शर्पासास्थिभिः (fecten) (Beels (faf) Clear (f) i (fire) fil रीट (बाहुया) जाडु ( लहुया) सधु (सुभगा ) सुलग : (सोवत्थिया) सोमस्ति (सुयबेटा) शुभप्रवृत्ति (इंदकाईया) इन्द्रायिष्ठा (इंदगोवया) न्द्रगोय (तुरंतु बगा) • छे ? (तेइंदिय संसारसमावण्णजीवपण्णवणा) ! ÷
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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