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प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.१४ जीवप्रज्ञापना रुयएँ, अंके फैलिहे य लोहियक्खे य, मरगय-मसारगल्ले, भुंयमोयग इंदनीले य ॥३॥ चंदण गेरुय हंलगब्भ पुलँए सोगं.. घिएं य बोद्धव्वे। चंदप्पमैं वेरुलिएँ, जैलते ट्रकंते य ॥४। . जे यावन्ने तहप्पगारा ते समासओ दुविहा पन्नत्ता, तं जहा. -पजत्तगा य अपज्जत्तगा य। तत्थ णं जे ते अपज्जत्तगा तेणं असंपत्ता । तत्थ णं जे ते पजत्तगा एतेसिं वन्नादेसेणं गंधादेसेंण रसादेसेणं फासादेसेणं सहस्सग्गसो विहाणाई, संखेजाई जोणिप्पमुहसयसहस्साइं, पजत्तगणिस्साए अपज्जत्ता वकमंति, जत्थ एगो तत्थ नियमा असंखेजा। से तं खरबायरपुढविकाइया। से तं बायरपुढविकाइया से तं पुढविकाइया ॥सू०१४॥ ' छाया-अथ के ते पृथिवीकायिकाः ? पृथिवीकायिका द्विविधाः प्रज्ञप्ता, तधथा-सूक्ष्मपृथिवी कायिकाश्च, बादरपृथिवीकायिकाश्च । अथ के ते सूक्ष्मपृथिवीकायिकाः ? सूक्ष्मपृथिवीकायिकाः द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तक सूक्ष्मपृथिवीकायिकाश्च, अपर्याप्तक सूक्ष्मपृथिवीकायिकाश्च, ते एतें सूक्ष्मपृथिवीका
शब्दार्थ-(से) अथ (किं तं) क्या है (पुढविकाइया) पृथ्वी कायिक ? (दुविहा). पृथ्वीकायिक दो प्रकार के (पण्णत्ता) कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (सुहमपुढविकाइया) सूक्ष्म पृथ्वीकायिक (य) और (वायरपुंडधिकाझ्या) बादरपृथ्वीकायिक (य) और (से किं तं सुहमपुढवीकाईया) सूक्ष्मपृथ्वीकायिक क्या हैं ? (दुविहा) दो प्रकार के (पन्नत्ता) कहें हैं (पज्जत्तगसुहुमपुढविकाइया य) पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और (अपजत्तगसुहमपुढविकाइया य) अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक __ ४ाथ-(से) मथ (कि, तं) शु छ. (पुढविकाइया) पृथ्वी ४ायि४ (पुढविमाझ्या) पृथ्वीय४७ (दुविहा), 2. ४२ना (पग्णत्ता) ४ा छ (तं जहा) तेस। २॥ प्रारे (सुहमपुढविकाइया) सूक्ष्म पृथ्वीयि (य) अने (बायरपुडविन, काइया) मा६२ पृथ्वी थि: (य) मने
(से कि तं सुहुमपुढविकाइया) सूक्ष्मपृथ्वीयि सा रन छ ? (सुहुमपुढविकाइय!) सूक्ष्म पृथ्वी४ि (दुविहा) ४२ना (पण्णत्ता) । (पज्जत्तगसुहुमपुढविकाइया) पर्याप्त सूभपृथ्वीय४ (अपज्जत्तगसुहमपुढविकाइया यो अपर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वी४५४ (से त्तं सुहुमपुढविकाइया) २॥ सूक्ष्म पृथ्वी यिनी પ્રજ્ઞાપના થઈ.
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