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________________ प्रतापनासूत्रे यिकाः । अथ के ते वादरपृथिवीकायिकाः ? वादरपृथिवीकायिका द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-श्लक्ष्णयादरपृथिवीकायिकाश्च, खरवादरपृथिवीकायिकाश्च । अथ के ते श्लक्ष्णवादरपृथिवीकायिकाः ? श्लक्ष्णवादरपृथिवीकायिकाः सप्तविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-कृष्णमृत्तिका १, नीलमृत्तिकार, लोहितमृत्तिका३, हारिद्रमत्तिका४, शुक्लमृत्तिका ५, पाण्मृत्तिका ६, पनकमृत्तिका७ । ते एते श्लक्ष्णवादरपृथिवीकायिका । अथ के ते खरवादरपृथिवीकायिकाः ? खरवादरपृथिवी(से तं सुहुमपुढविकाइया) ये समपृथ्वोकायिक की प्रज्ञापना हुई। (से किं तं वायरपुढविकाइया) बादर पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? (दुविहा) दो प्रकार के (पन्नत्ता) कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (सण्हवायरपुढविकाइया य) श्लक्ष्ण-चिकने बादर पृथ्वीकायिक (खरवायरपुढविकाइया य) खरचादर पृथ्वीकायिक (से कि तं सण्वायरपुढविकाइया) श्लक्षणवादरपृथ्वीकायिक कितने प्रकार के हैं ? (सत्तविहा) वे सात प्रकार के (पन्नत्ता) कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार (किण्हमाहिया) काली मिट्टी (नीलमट्टिया) नीली मिट्टी (लोहियमट्टिया) लाल मिट्टी (हालिद्दमट्टिया) पीली मिट्टी (सुकिल्लंमट्टिया) सफेद मिट्टी (पांडुमटिया) पाण्डु वर्ण की मिट्टी (पणगमट्टिया) पनकमिट्टी (से तं सण्हवायर पुढविकाइया) यह श्लक्ष्ण वादर पृथ्वीकाय की प्ररूपणा हुई। . (से किं तं खरवायरपुढविकाइया) खरवादर पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के हैं (अणेगविहा) अनेक प्रकार के (पन्नत्ता) कहे हैं . (से किं तं वायरपुढविकाइया) हुवे ॥६२ पृथ्वीय सा अनी छ ? (वायरपुढवीकाइया) मा पृथ्वीय (दुविहा) में प्रारनी (पण्णत्ता) ४ह्यो. छे (तं जहा) मा मा प्रारे (सण्ह वादरपुडवीकाइया य) सक्षए-[ixey!' मा२ पृथ्वीय (खरबायरपुढविकाइया य) १२ मा४२ पृथ्वीय - (से कि तं सहवायरपुढविकाइया) सण माह२ पृथ्वीय दा ४२ ४ह्या छ ? ६ मारपृथियि४ (सत्तविहा) सात प्रा२ना : (पण्णत्ता) ४ा छ (तं जहा) तेगो मा शते (किण्हमत्तियो) णी माटी (नीलमत्तिया) पाणी भाटी (लोहियमट्टिया) सास भाटी (हालिदमट्टिया) पीजी भाटी (सुक्किल्लमटिया) स३६ भाटी (पांडुमट्टिया) पांड २नी भाटी (पणगमटिया) पन४ भाटी (से तं सण्ह वायरपुढविकाइया) म सक्षण माह२ पृथ्वी કાયિકની પ્રરૂપણ થઈ. (से कि तं खरवायापुढविकाइया) लगवन् २मारवाय: ' ३८८ प्रा२ना छ ? (खरवायरपुढवीकाइया) भ२ मा पृथ्वीजयि (अणेगविहा) -
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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