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________________ २०० प्रशापनासूत्रे यिकानां प्रथममुपादानं कृतम् , तदनन्तरम् अप्कायिकानां तत्प्रतिष्ठितखात, उपादानस् , तेषाञ्च तेजः प्रतिपक्षथूतत्वेन तदनन्तरं तेजस्कायिकानामुपादानम् , तेजसश्च वायुसम्पर्केण प्रवृद्धिदर्शनात् , तदनन्तर वायुकायिकग्रहणम् , दूरस्थस्य च वायोः तरुशाखादि कम्पनेन लक्ष्यमाणलात् तदनन्तरं वनस्पतिकायिकोपादानं बोध्यम् ॥सू० १३॥ ' मूलम्-से किं तं पुढविकाइया ? पुढविकाइया दुविहा पष्णत्ता, तं जहा-सुहुमपुढविकाइया य१ वायरपुढविकाइया य२। से किं तं सुहुमपुढविकाइया ? सुहुमपुढविकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-पजत्तगसुहमपुढ विकाइया य१, अपज्जत्तगसुहुमपुढविकाइया य२ । से तं सुहुमपुढविकाइया। • से किं तं बायरपुढविकाइया ? बायरपुढविकाइया दुविहा पन्नत्ता, तं जहा-सह वायरपुढविकाइया य१, खरबायरपुढ'विकाइया य२। से किं तं साहबायरपुढविकाइया ? सहवायरपुढविकाइया सत्तविहा पन्नत्ता, तं जहा-किण्हमत्तियार, नीलमत्तियार, लोहियमत्तिया३, हालिदमत्तिया४, सुकिल्लमत्तिया५, पांडुम: त्तिया६, पणगमत्तिया७, से तं सहबायरपुढविकाइया। .. से किं तं खरबायरपुढविकाइथा ? खरबायरपुढविकाइया अणेगविहा पन्नत्ता, तं जहा-पुढवी य सकरा बालुया य उवले सिला य लोणूसे। अयतंब तउयसीसय रुप्पसुवन्ने य वैइरेया। हरियोले हिंगुलँए मणोसिला सास-गंजण-पवाले। अब्भपडलब्भ वाले य, बायरकाए मणिविहाणा ॥२॥ गोमेज्जए य होने से वृक्ष की शाखा आदि के हिलने से उनका अनुमान किया जाता है, अतएव वायुकाय के बाद वनस्पतिकाय का निर्देश किया है ॥१३॥ વાયુમાં વ્યક્ત રૂપ ન હોવાથી વૃક્ષની ડાળી વિગેરે હલવાથી તેનું અનુમાન ___--- ४२॥य छ, तथा वायुयना पछी वनस्पतिया निशध्य छे. ॥ सू. १३ ॥
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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