SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 754
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७३হু जीवामिगम पर्षद अर्द्धतृतीयानि देवीशतानि - अर्द्धाधिक द्विशतानि एज्ञप्तानि - 'चमरस्स णं भंते! असुरस असुररन्नो' चमरस्य खलु भदन्त । असुरकुमारेन्द्रस्य अमरकुमारराजस्य 'अभितरियार' अभ्यन्वरिकायां समिताभिधानायां प्रथमायां पर्पदि 'देवाणं hari कालं ठिई पन्नत्ता' देवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञष्ठा ? तथा - 'मज्झि मियाए परिसयाए देवाणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' माध्यमिकायां चण्डाभिधानायां द्वितीयस्यां पर्षद देवानां कियन्तं कालं स्थितिः - आयुष्यकालः प्रज्ञप्ता ? तथा - 'बाहिरियाए परिसाए देणं केवइयं कालं ठिई पन्नत्ता' वाद्यायां तृतीयस्यां जाताभिधानायां पदि देवानां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता, एवम् हे भदन्त ! आभ्यन्तरकायां प्रथम पर्पदि देवीनां स्थितिः कियन्तं कालं प्रज्ञप्ता तथा 'मज्झि मियाए परिसाए देवीणं केवइयं कालं ठिई पन्नता' माध्यमिकायां चण्डाभिधानायां पदि देवीनां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता, वथा - 'बाहिरियाए परिसाए hati hari कालं ठिई पन्नत्ता' वाह्यायां तृतीयस्यां जाताभिधानायां पर्यदि atri fari काल स्थितिः यज्ञप्तेति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोमा' हे गौतम ! 'चमरस्स णं असुर्रिदस्त असुररन्नो' चमरस्य खलु असुरकुमारेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य 'अभितरियाए परिसाए' आभ्यन्तरिकायां समिताभिधानायां पर्पदि 'देवाणं अड्डाइज्जाई पळिओवसाद' ठिई पन्नत्ता' देवानाचमर की 'अभितरियाए परिमाए देवाणं केवहयं कालं ठिई पन्नत्ता' आभ्यन्तर सभा के देवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? 'मनिमिया परिसाए देवाणं केवहयं कालं ठिई पन्नत्ता' मध्यम परि पदा के देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? तथा 'बाहिरियाए परिसाए देवाणं वश्यं कालं ठिई पन्नत्ता' बाह्य परिषदा के देवों की कितने काल की स्थिति कही गई है ? इसके उत्तर में प्रभु श्री कहते है - 'गोयमा ! चमरस्त्र णं अलुरिंदरस असुररनो अभितरियाए परिसाए देवाणं अड्डाहज्जाई पलि ओषमाह ठिई पण्णत्ता' हे गौतम असुरेन्द्र असुरराज चमर की आभ्यन्तर सभा के देवों की स्थिति भगवन्! असुरेन्द्र असुरान भरनी 'अभि' तरियाए परिसाए देवाण केवइय काल ठिई पण्णत्ता' अभ्यन्तर परिषद्वाना हेवोनी डेटला अजनी स्थिति अहेवामां मावेस छे ? 'मझिमियाए परिसाए देवाणं केवइयां काल टिई पण्णत्ता' मध्यभ परिषधाना हेवानी स्थिति डेंटला हाजनी उडेवासा आवे छे ? तथा 'बाहिरियाए परिखाए देवाण केवइय' काल' ठिई पण्णत्ता' माह्य परिषहना हेवानी स्थिति डेंटला अजनी वामां आवे छे ? या प्रश्नना उत्तरमां अनुश्री ४हे छेडे गोयमा ! मरस्य ण असुरिदा असुररन्नो अन्भितरियाए परिसाए देवाणं अड्ढाइज्जाइ पढियोवमाइ ठिई पण्णसा' 'हे गौतम! असुरेन्द्र असुरान यमरनी आल्य
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy