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________________ प्रमेयधोतिका टीका प्र.३ २.३ सू.४६ देवस्वरूपवर्णनन् देवीशतानि प्रज्ञतानि-कथितानि, तथा-सज्झिभियाए परिसाए' माध्यमिकायां द्वितीयस्यां चण्डाभिधानायां पदि कर देविसया पन्नत्ता 'कति-कियत्संख्यकानि देवीशतानि प्राप्तानि-कथितालि तथा-'बाहिरियाएपरिसाए कइ देविसया पन्नत्ता' वाह्यायां तृतीयस्यां जाताभिधानायां पपदि कति-कियत्संख्यकानि देवीशतानि प्रज्ञप्तानीति चमरस्य देवीसंख्षाविषयकः प्रश्न:, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'चपरस्स णं असुरिदस्त असुररनो' चमरस्य खलु असुरेन्द्रस्यामुरराजस्य 'अभितरियाए परिसाए' अवतरिकायां प्रथमाया समिताभिधानायां पर्पदि 'अछुट्टा देविसया पन्नचा' अर्द्धचतुर्थानि देवीशतानि-अर्धाधिकानि त्रीणि देवीशतानि प्रज्ञप्लानि, तथा-'मज्झिमियाए परिसाए' माध्यमिकायां चण्डाभिधानायां पर्षदि तिनि देबिसया पलत्ता' विसं वानि देवीशतानि प्रज्ञप्तानि, तथा'बाहिरियाए अड्डाइज्जा देविसया पन्नत्ता' बाह्यायां जाताविधानायां तृतीयस्यां कति देविसथा पण्णता हे भदन्त असुरेन्द्र असुरराज्य की आभ्यन्तर परिषदा में कितनी लौ देवियों कही गई है ? 'मज्झिभियाए परिसाए कइदेविसया पण्णता' मा परिषद, कितनी सी देवियों कही गई है ? 'वाहिरियाए परिसाए कति देबिसया पणत्ता तथा बाह्य परिषदा में शिलानी सौ ऐचिया कही गई है? उत्तर में प्रसुश्री कहते है 'गोयला अगर स्ल णं अलुरिंदर असुररनो अभितरियाए परिसाए अधुट्टा देविलया पधणसा' हे गौतम! असुरेन्द्र असुरराज चमरेन्द्र झी आभ्यन्तर परिषदा साढे तीनवौ ३॥ देधियां कही गइ है। 'मज्झिमियाए परित्याए तिनि देविया पन्नत्ता' मध्यमिका सभी में तीन ३ सौ देवियों कही गई है 'बाहिरियार अडाइज्जा देविया पनत्ता' और वाद्य स्वभावालोदेवियां कही गई है। 'चर. सण मते ! आरिदस्त अररो' हे बदन्त ! अस्तुरेन्द्र असुरराज क्या हेवामां आवसले १ 'मलिमियाए परिसाए कति देविसया पण्णत्ता बाहिरियाए परिसाए कइ देविसया पण्णत्ता' मध्य पश्षिामा टस से 31 દેવાઓ હેવાનું કહેલ છે? તથા બાહ્ય પરિષદામાં કેટલા સે દેવિયો હોવાનું पामा मावस छ १ मा प्रश्न त्तरमा प्रभुश्री ४४ छ 'गोयमा ! चमरस्त्र ण असुरिंदस्स असुररन्नों अभितरियाए परिसाए अधुढा देविसया पण्णत्ता' હે ગૌતમ! અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમરેન્દ્રની આભ્યન્તર પરિષદામાં ૩૫૦ साडी सेवियो डातु हम छे. 'मज्झिमियाए परिमाए तिन्नि देविसया पन्नत्ता' मध्यभि समामा ३०० से पियो वाम मावणे. 'बा. हरियाए परिसाए अढाइज्जा देविसया पन्नत्ता' मन मा परिषदामा २५० lal all ही छ. 'चमररस ण' भने! असुरिंदस्व असुररण्णा' है
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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