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________________ प्रमैयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ ५.४६ देवस्वरूपवर्णनम् मर्द्ध तृतीयानि एल्योषमानि अर्धाधिकानि द्विपल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता, तथा 'मज्झिभियाए परिसाए' माध्यमिकायां चण्डाभिधानायां पर्पदि 'देवाणं दो पलिओवमाई ठिई पन्नत्ता' देवानां द्वे पल्योपमे-पल्योपमद्वयं यावत् स्थितिः प्रज्ञप्ता, तथा-'बाहिरियाए परिसाए' बाह्यायां जाताभिधानायां पर्पदि देवाणं दीवई पलिभोरम ठिई पन्नत्ता' देवानां द्वचध-साद्धं पल्पोपमं यावत् स्थिति: प्रज्ञप्ता, 'अमितरियाए परिसाए देवीणं दीवडूं पलिओवम' आभ्यन्तरिकायां वर्षदि देवीनां द्वयधै पल्योपमं स्थितिः प्रज्ञप्ताः तथा-'मज्झिमि. याए परिसाए देवीणं पलियोधर्म ठिई पन्नत्ता' माध्यमिकायां एपदि देवीनां पल्योपमं यावर स्थितिः मज्ञप्ता, बाहिरियाए परिसाए देवीणं अद्धपलिओवम ठिई पन्नत्ता' बाह्यायां जामाभिधानायो पर्षदि देशनाद्ध पल्यो. पम याच स्थितिः प्रज्ञा-कथित्तेति भगत उत्तरमिति ॥ सम्पति-आभ्यन्त रिकादि व्यपदेशकारणं पिच्छिषु रिदमाह- से केणद्वेणं मंते ! एवं बुच्चई' अथ केनार्थेन केन कारणेन भदन्त ! एद मुज्यते-'चपररस असुरिंदस्स असुररन्नो अढाइ पल्पोपस की कही गई है 'मज्झिमियाए पहिलाए देवाणं दो पलि. ओवनाई ठिई पगला' मध्यपरिषदा के देशों की स्थिति दो पल्पोपम्म की कही गई है और 'वाहिरियाए परिसाए देवाण दीड पलिओवर्म ठिई पण्णता बाह्य परिषदा के देशों की स्थिति डेढ १॥ पल्योपाल की कही गई है 'अभितरियाए परिसाए देवीण दीडूं पलिओचमं तथा आभ्यन्तर परिपक्षा की देवियों की स्थिलि डेढ १।। पल्योपद की कही गई है 'मज्झिमिथाए परिसाए देवीणं पलिओपलं ठिई पञ्णता' मध्यमा परिषदा की देशियों की स्थिति एक पल्पोपम की कही गई है। जाहिरियाए परिसाए देवीणं अद्धपलि ओवर्म' और बाह्य परिषदा की देखियो पी स्थिति आधे पल्यापम की कही गई है। सेकेण मंते ! एवं वुच्चर' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते है कि 'चमरस असुर्ति तर समान वानी स्थिति मति पयोमनी ४ामा मावस छ. 'मज्झमियाए परिसाए देवाणं दो पलिओवमाईठिई पन्नत्ता' मध्य पश्षिाना हेवानी स्थिति में पयोमनी डेस छ. म 'बाहिरियाए परिसाए देवाण दीरढं पलिओवन ठिई पणत्ता' मा परिषद्याना हेवोनी नियति १॥ होट ५त्योपमनी ४९ छे. 'अभितरियाए परिसाए देवीण दीवड्ढ पलिओवम' तथा मायन्तर परिषहानी हेवियोनी स्थिति ॥ हद ५८यो५मनी उस छे. 'मझिमियाए परिसाए देवीण पलिओवम' मध्यम परिषहनी लियोनी स्थिति से पदया. ५मनी ४७स छे. 'बाहिरियाए परिखाप देवीण अद्ध पलिओवम' मने माघ परिषहानी देवियोनी स्थिति म पक्ष्योपभनी स . 'से केणट्रेणं भवे ! एवं वुच्चइ' । पम् 1 मा५ मे २॥ २थी ४७४'पमररस पशु
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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