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________________ प्रमेयद्योंतिकाटीका प्र.३ उ.३ ५.४३ ऑभाषिकद्वीपनिरूपणम् ६८३ चरमान्तात् 'लजणसमुदं तिनि जोधणसयाई भोगादित्ता का सुदं त्रीणि योजनशतानि अवगाह्य 'एस्थ णं पाभासियमणुरक्षाणं आभासियदोवे णामं दीवे पण्णत्ते' अत्र खलु आभापिकमनुष्याणाम् आभाषिकद्वीपो नागद्वीपः प्रज्ञप्तः, 'सेसं जहा एगोरुयाणं निरवसेसं सव्वं शेष यथा एकोरुकाणां निरवशेष सर्वम् एकोरुकमनुष्यवदेव आमापिक द्वीपस्य वर्णनम् आभाषिकमनुष्यस्वरूपादिकं च स निरव शेष वक्तव्यम् । 'कहि णं भंते' कुन खलु भदन्छ ! 'दाहिणिल्लाणं वेसालिय मणुस्साणं पुच्छा' दाक्षिणात्यानां वैशालिकमनुष्याणां वेशालिक नामको द्वीपः प्रज्ञप्तः इति पृच्छया संगृह्य में प्रश्ना, मनवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'जंबुद्दीचे णं दोवे' जम्बूद्वीपे खलु द्वीपे 'मंदरस्स एव्ययस्स' मन्दरनामकास्य पर्वतस्य 'दाहिणे णं' दक्षिणेन 'चुल्लदिमवंतस्स वासहरपव्ययस्स' चुल्लहिपरतो पंधरपर्वतस्य 'दाहिणपच्चस्थिमिल्लाओ चरिमंताओ' दक्षिणपाश्चात्याद नैऋतकोणादित्यर्थः चरमा'लवणसमुई तिनि जोधणमयाई ओगाहित्ता' लवण लघुद्र में लीनसौ योजन जाने पर हलो स्थान पर 'एत्थ णं आवालिया मणुल्साणं आभा. सिय दीवे णामं दीवे घण्णन्ते' आमाषिक मनुष्यों का आभाषिक नाम का द्वीप है। 'सं जहा एगोरुषाण णिरक्खे सव' इस द्वीप के सम्बन्ध में एवं यहां के मनुष्यों के सम्बन्ध में बाकी का और लव कथन एकोरुक द्वीप के प्रकरण में जैसा किया गया है वैसा ही जान लेना चाहिए । 'कहिणं भले ! दाहिणिल्लाणं सालिय वेलानिय भणुस्लाणं पुच्छा' हे अदन्त ! दक्षिण दिशा के बैशालिक वैषाणिक मनुष्यों का वैशालिक वैषाणिक नामका द्वीप कहां पर है। उत्तर मे प्रभुश्री कहते है'गोयमा जवहीवे दीवे महल पक्षयस्त दाहिणे णं चुहिमवंतस्स वासहरपव्वयम दाहिण पच्चशिपिल्लाओ चरिमंताओ समुदं माना यरमा-तथी 'लवणख मुदं तिन्नि जोयणसयाई ओगाहित्ता' सव समुद्रमा त्रसे। योभनय त्यारे 'एत्थणं आभासियमणुस्ताण आभासिय दीवे णाम दीवे पण्णत्ते' में स्थान५२ मषि मनुष्यान मालापि नामना दी५ छ. 'सेस' जहा एगोरुय णं णिरवसेस सव्व' मा दीपना समयमा तम त्यांना મનુષ્યના સંબંધમાં બાકીનું તમામ કથન એકરૂક દ્વિપનાં પ્રકરણમાં જે પ્રમાણે पामा मावस छे से प्रभाय सभ लेन्थे 'कहिणं भते ! दाहिणिल्लाण वेसालिय वेसाणिय मगुस्साण पुच्छा' मपन् ! इक्षिण शिना पैशाति અને વૈષાણિક મનુષ્યના વૈશાલિક અને વૈષાણિક નામના દ્વીપે ક્યાં આવેલ છે AL प्रशन उत्तम श्री तासीन से छे । 'गोयमा ! वृद्द वे दीवे मदरस सरस दादिगं चुल्ल इमवंतल कान्ताः - दहिण
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
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