SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 643
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमैयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ द.३९ एकोरुकस्थानामाहारादिकम् १२१ रन्तीति प्रश्ना, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि गोयमा' हे गौतम ! 'पुढवी पुप्फफगहारा ते मणुयगणा पण्णत्ता सम्मणाउसो' पृथिवी पुष्पफलाहारास्ते मनुजगणाः प्रज्ञप्ताः हे श्रमण ! हे आयुष्मन् ते पृथिवी पुष्फलानि आहारा र्थमाहरन्तीत्यर्थः, एवं भूता मनुजगणाः कथिता इति, 'तीसेणं भंते ! पुढवीए' तस्या आहार्थतया उपादीयमानाया: खल्लु पृथिव्याः 'केरिप्तए आसाए एण्णत्ते' कीदृशः-किमाकारक आस्वादः रसः प्रज्ञप्तः-कथित इति प्रश्ना, भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'से जहा गामए' स यथा नामकः 'मुळेइवा' गुड इति वा इक्षुरसक्वायो गुडः, 'खंडेइ पा' खण्डमिति वा खण्डं गुडविकारः, 'सक्कराइ वा, शर्करेति वा शर्कराकाशादि प्रभवा 'मच्छंडियाइ वा' मत्सण्डिकेति वा, मत्सण्डिका खण्डशर्कराषिसरीति भाषापसिद्धाः, 'मिसकंदेइ वा' विसकन्दमिति वा, विसकन्दं-कमल-मूलम्, 'पप्पडमोएइ पा, पर्पटमोदक इति चा स च खाधविशेषः, 'पुप्फउत्तराइ वा' पुरुषोत्तरेति वा, पुष्पविशेष निष्पन्ना हारा ते मणुयगणा पण्णता ममणाउलो।' हे श्रमण आयुष्मन् गौतम ! वे एकोरुक द्वीप के मनुष्य पृथिवी पुष्प एवं फलों का आहार करते हैं 'तीसे णं भंते ! पुढवीए के रिसए आसाए पण्णत्ते हे बदन्त ! उस पृथिवी का कैसा आस्वाद रस-या गया है ? उत्तर में प्रभु करते हैं-'गोषमा! से जहाणामए गुलेइवा खंडेइ वा सक्राइघा मच्छंडिया इका मिस. कंदेह वा पपण्ड मीथएइ वा पुष्प उत्तराचा पउमुत्तरापा, अकोसिया वा, विजया वा, महा बिजयाइ बा' हे गौतम ! जला गुड़ का स्वाद होता है, खांड का स्वाद होता है, शक्कर का स्वाद होता है जिसरी का स्वाद होता है कमल बन्द का स्वाद होता है पपेट मोदक खाद्य विशेषका स्वाद होता है 'पुष्पोत्तर-पुष्प विशेष से बना शकर का जैसा स्वाद हो पद्मोत्तर-कमल विशेष से उत्पन्न शकर अफोशित पण्णत्ता समणाउसो' श्रम आयुज्यमन् गौतम ! 31३४ दीपना मनुष्य! पृथ्वी, ५०५, मन सोन। माहार ४२ हे. 'तीसे णं भाते ! पुढवीए केरिसए आवाए पण्णत्ते' मगर पृथ्वीना । मारवाह-२स 38ो छ ? मा प्रश्ना उत्तरमा प्रसुश्री से छे है 'गोयमा ! से जहा नामए गुलेइवा, खडेइवा, सस्कराइवा, मच्छडियाइवा, भिसक देइवा, पप्पडमोयपइवा, पुष्प उत्तराइवा, पउमुतराइवा, अकोसियाइवा, विजयाइया, महाविजयाइवा' गौतम ! गोजना वाह होय છે, ખાંડનો જેવો સ્વાદ હોય છે, સાકરને સ્વાદ જે હોય છે, મિસરીને સ્વાદ જેવો હોય છે. કમલકંદનો વાદ જેવો હોય છે, પર્પટ મેદકને જેવો સ્વાદ आय छ 'पुप्पोत्तर' पु०५ विशेषथा नाद सा२ना वाहवा डाय छ, पशोत्तर
SR No.009336
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1973
Total Pages924
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy