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ओपपातिकबरे
तेरस सागरोवमाई ठिई, अणाराहगा, सेसं तं चेव ।। सु०५६॥ . .मूलम्-से जे इमे सपिण-पंचिदिय-तिरिक्तजोणिया पज्जत्तया भवंति, तं जहा-जलयरा थलयरा खहयरा, भवन्ति उपयन्ते, एतेषा विशिष्टश्रामण्यजन्य देव न, प्रयनीकनाजन्य किन्चिपिकच, तेन ते देवेषु चाण्डालतुन्या भर्वात । 'तहि तेसिं गई । तर तेपा गतिः, 'तेरस सागरोबमाइ ठिई' त्रयोदश सागरोपमाणि स्थिति । 'अणाराहगा' अनाराधका भवति । 'सेस त चेव' शेप तदेव ।। सू० ५६ ॥
टीका--'से जे इमे' इत्यादि । ' से जे उमे' अथ य इमे 'सण्णि-पचिदिय-तिरिक्खजोणिया पजत्तया भांति' सनि-पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिका पयसा भवन्ति, के ले ? इत्याह-'त जहानद्यथा-'जलयरा थलयरा वहयरा' जलचरा स्थलचरा सेचरा 'तेसिं णं अत्येगइयाणं सुभेणं परिणामेण पसत्येहि अन्य प्रकार देवों में किल्विपिक जाति के देव होते हैं । (तहि तेसि गई) वहीं पर उनकी गति होती है। वहा ( तेरस सागरोवमाइ ठिई) १३ सागर को उनकी स्थिति होती है। (अणाराहगा सेस त चेत्र) ये जीव अनाराधक होते हैं। इस विषयमें अवशिष्ट पूर्ववत् समझना चाहिये ॥ सू ५६ ॥
'जे इमे' इत्यादि ।
जे इमे सण्णि-पचिंदिय-तिरिक्ख-जोणिया) जो ये सजि-पचेद्रिय-तिर्यञ्चयोनि के पर्यात जीव हैं, (त जहा) जैसे--(जलयरा थलयरा खयरा) जलचर, स्थलचर और खेचर। (तेर्सि ण अत्थेगइयाण सुभेणं परिणामेण पसत्येहिं अज्झवसाणेहि ) જેવી રીતે લોકમાં ચાડાલ આદિ હોય છે તેવી જ રીતે મા કિતિદષિક जतिना व डाय छ (तहिं तेसिं गई) त्या तभनी गति खाय छे त्या (तेरस सागरोचमाइ ठिई) १३ 'सागरनी तमनी स्थिति य छ (अणाराहगा सेस त चेव) या विषयमा माडीनु मधु म16 प्रमाणे सभा જોઈએ એ જીવ અનારાધક હોય છે (સૂ પદ)
से जे इमे' इत्याहि
से जे इमे सण्णि-पचिंदिय-तिरिक्स-जोणिया) २. सजी-५येन्द्रिय, तिर्य-योनिना पर्याप्त है, (त जहा) वा (जलयरा थलयरा खह मोरयर, स्थायर भने मेयर (नसिं ण अत्यगइयाण सुभेणं परिणामेण