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पाणी-टीका सू ५५ आचार्यादिप्रत्यनीय साधु वर्णनम्
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परियागं पाउणति, पाउणित्ता तस्स ठाणस्स अणालोइय- अप्पडिकंता कालमासे कालं किया उक्कोसेणं लंतए कप्पे देवकिव्विसिसु देवकिव्विसियत्ताए उववत्तारो भवति, तहिं तेसिं गई,
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परिया पाउति पाउणित्ता' बहूनि वर्षानि श्रामण्यपर्याय पालयन्ति, पालयित्वा 'तस्स ठाणस्स' तस्य स्थानस्य तस्य प्रत्यनीकादिजातस्य पापस्थानस्य, 'अणालोइय-अप्पडिफ्ता' अनालोचिताऽप्रनिकान्ता = गुरुसमीप आलोचनाया प्रतिकमणस्य चाकरणेन दोपादनित्ता सन्त कालमासे काल का ', काल्मासे काल कृत्वा 'उक्कोसेणं तए कप्पे देवकिपिसिएस ' उकर्षेण लान्तके कपेलातकनामके पष्ठे देवलोके देवकिन्निपिकेषु देवव्निसियत्ताए उववत्तारो भवति ' देवकिच्चिपिकतया उत्पत्तारो
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पाप का उपार्जन करते हुए (विहरिता वहाँ वासा) इस भूमडल पर विचरण करते रहते है, और इतन्तत उसका प्रचार करते २ ही अनेक वर्षों तक उस साधुपर्याय को पालते है, वे (तस्स ठाणम्स अगालोग्य- अप्पडिकता) उन पापस्थानों की आलोचना नहीं कर के, उन पापस्थानों का प्रतिकमण नहीं करके (कालमासे काल किच्चा) काल असर में काल कर (उकोसेर्ण) उत्कृष्ट (तए कप्पे देवकिव्विसिएस देवकिव्विसियत्ताए उववत्तारो भवंति लान्तक नामके छठवें देवलोक में फिलिपिक देवों में किच्चिपिक जाति के देव होते हैं । इनको जो पर्याय मिलती है वह विशिष्ट श्रामण्यजन्य है, अर्थात् चालतप के प्रभाव से प्राप्त होती है, परंतु चहा फिलिपिक देवों में जो जन्म होता है यह तो आचार्यादिक की प्रीता के फल से होता है । जिस प्रकार लोक में चांडाल आदि हुआ करते हैं उसी
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(विहरिता व वासाइ ) भालूभ उण उपर वियरशु ४२ता रहे छे, रमने આમ-તેમ તેને પ્રચાર કરતા નતા જ અનેક વરસે સુધી તે સાધુર્યાં अनुपालन रे थे, तेथे (तस्स ठाणरस अणालोइय-जप्पडिवता) ते पापસ્થાનેાની લેાચના નકશ્તા, તે પાપાનનું પ્રતિક્રમÁ ન કરતા (flsमासे काल किच्चा) अस अवसरे सीने (उम्कोसेण) उष्ट (लतए कप्पे देवकिच्चिसि देवकिन्निमित्ताए उत्तारो भवति) सान्त नामना छुट्टी देवલેાકમા કિબિયિ, દેવેમા બિટિપિક જાતિના દેવ થાય છે. તેમને જે દેવપર્યાય મળે છે, તે વિશિષ્ટ શ્રમણ ધર્મ પાળવાથી જ મળે છે, અર્થાત્ માલતપના પ્રમાવી પ્રાપ્ત થાય છે, પરંતુ ત્યા જે િિષિક દેવામા જન્મ થાય છે એ તે આચાય આદિકની પ્રત્યેનીકતાના ફળથી ચાય છે