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पोषवषिणो-टोका र १६ अम्ग्रहपरिवाजविषये भगवद्गीतमयो संपाद ६०५ गयं ७, पुक्खरगयं ८. समतालं ९, जूयं १०. जणवायं ११, पासगं १२. अहावयं १३, पोरेकव्वं १४. दगमट्टियं १५, अण्णविहिं १३, पाणविहिं १७, आभरणविहिं १८, सयणविहिं १९, अजं २०, स्वगणा परिमानम ७, 'पोफमरगय' पुष्कग्गत-मृदङ्गविषयकं विज्ञानम , वाद्यान्तर्गनवेऽपि मदगादे पृथककथन परमगीतामापोरनार्थम् ८, 'ममताल' समताल-गीतादिमानकाल रताल म सम =न्यूनापिकमानारहितो जायते यस्मात् तत् ममतालविज्ञानम् ९, 'जूयं'
त-'जुगार' इति भाषायाम १०, 'जणवाय' जनवान-जनेषु वादप्रतिवादकरणस्यम् ११, 'पासय' पाग-धतोपकरणविशेष, 'पागा' इति भापायाम १२, 'अट्ठावय' अष्टापद-चूतविशेषग्वेल्नम १३, 'पोरेकन्च' पुर काव्य-पुरत पुगत काव्य-काव्यम्पपाणानि सारणं
याप्रकरित्यमित्यर्थ १४, 'दगमट्टिय' रकमत्तिकाम् उत्कयुक्तमृत्तिकाप्रयोगविधि दकमत्तिका-कुम्भकाररिपेयर्थ , ताम् १५, 'अन्नविहि. अन्नविधिम अन्ननिष्पादनविज्ञानम् । 'अन्नविहि' इत्यत्र समायामोक्तस्य 'मधुमिथ' इत्यस्य समावेग १६, पाणविहि पानविषयविज्ञानम् १७, 'भामरणविहि आभग्णविधिम-भूपगनिमाणधारणविज्ञानम् ।
म्वरा की गति के मूलभूत पज-मपभ आदि स्वर्ग का, (८ पुपरवरगय) मृद्रग बजाने की (९ समताल) समताल की-तान के अनुसार नाल नजान का, (१० जयं) जुआ खेलन की, (११ जणवाय) लोका क साथ प्रतिवाट कग्न का, (१२ पामग) पासा फेंकने की, (१३ अट्ठावय) अष्टापद-चौपड खेलने का, (१४ पोरेकचा आशुकवि होन की, (१५ दगमदिय) मिट्टी से अनेक प्रकार क वर्तन बनाने की, (१६ अण्णविहि) धान्य आदि को वो कर अन्नादिक उत्पन्न करन की-भोजन बनाने का, समयायाग में उक्त 'मपुसित्यमधुसिस्य का इसामे समावेश किया गया है (१७ पाणविहिं) पेयपदार्थ की पिपि जानन ५४०-५म माति १२रानी, ८ (पुस्मरगय) भूट पाउपानी, (ममनाल) समतासनी-तानने अनुमा२ तास पानी, १० (ज्य) नुसार २भवानी, ११ (जणपाय) बाजानी माये प्रतिमाह ७२वानी, १२ (पासग) पामा पानी, १३ (अट्ठारय) माप-यापार २भवानी, १४ (पोरेकन्य) मावि थवानी, १५ (दगमट्टिय) भाटीमाथा भने २॥ म मनापानी, १९ (अण्णविहि) घान्य माहिने पापीन अन्न माहिने 641 २१नी-मासन मना
पानी, सभपायागमा 61 'मधुमित्थ' भसियने। समावेश डी ४ ४२पामा माये। छ, १७ (पाणनिहिं) पीवाना पहायनी विपि पानी, १८