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औपातिकas
पहेलियं २९, मागहियं २२, गाहं २३, गीइयं २४, सिलोयं २५, ३
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'आभरण त्रिि इयन समनाया जाता - राजपक्षीय जम्बुद्वीपप्रज्ञमिवर्णितस्य 'वत्थरिहिं' इत्यस्य, तथा ज्ञाता - राजप्रश्रीय- जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिरुवितस्य 'विलेवणविहिं' इत्यस्य च समावेश १८, 'सयणविहिं' शयननिधिार यापर्यादिनिविज्ञानम् १९, 'अज्ज' आर्या=मानान्दोरूपा, मात्रा मेनन उन्दोनिमाणनिज्ञानम् २०, ' पहेलिय प्रहेलिका = गूढाशय गद्यपद्यमय रचनाम् २१. ' मागहिय' मागधिका=मगधदेशीयभाषाकपित्वम् २२, ‘गाह' गाथा = मस्कृतेतग्भापानिनद्रामार्यामेव, कलिङ्गादिदेशभाषानिबद्ध कचित्यविज्ञान ना २३, 'गीइय' गीतिका = पूर्वार्धसदृशोत्तरार्धलक्षणरूपाम् २४, 'सिलोय' श्लोकम्=अनुष्टुबादिलक्षणम् २५ हिरण्णजुत्ति' हिरण्ययुक्तिरजतनिर्माणकी, (१८आभरणनिर्हि) आभरण आदि को बनाने व उन्हें यथास्थान धारण करने की, समवायाङ्ग ज्ञाता, राजप्रश्नीय और जम्बूद्रीपप्रज्ञप्ति में उक्त 'वत्थविहिं' वस्त्रविधि का, ज्ञाता, राजप्रश्नीय तथा जम्बूद्वीप में उक्त 'विलेवण निर्हि' निलेपननिधि का समावेश यहीं पर हो जाता है, (१९ सयणविहिं) राया आदि बनाने का, (२० अज्ज) आर्याउन्द-मात्रिक छंदों को रचने की, (२१ पहेलिय) प्रहेलिका की, अथात् गूढ आगमनाला गद्यपद्यमयी रचना करने को (२२ मागहिय) मागधिकाकी अर्थात् मगध देशकी भाषा मे कविता रचने की, (२३ गाह) मस्कत से भिन्न भाषा में मात्रिक छन्दो में कविता रचने की, अथवा कलिंग आदि देशों की भाषा में निबद्ध कविता के विज्ञान की, ( २४ गीइय) पूर्वार्ध के सदृश उत्तरार्ध लक्षणरूप गीतिका उन्द मे काव्य रचन का, (२५ सिलोय) अनुष्टुप् आदि छन्दों में श्लोकों को रचने की. (२६ हिरण्णजुति) चाँद बनाने का विधि की (२७ सुत्र (आभरणविहिं) मालश्शु महि मनाववानी, सभवायाग, જ્ઞાતા, રાજપ્રનીય अने यूद्वीप प्रज्ञसिभा उत ' वत्थविहिं ' वस्त्रविधिना, मने ज्ञाता, शुभપ્રશ્નીય અને સમવાયાગમા ઉક્ત 'विलेवणविहिं' विद्वेधनविधिना સમાવેશ અહીં જ કરવામા આવ્યેા છે १५ ( सयण विहिं ) शय्या આદિ मनाववानी, २० ( अज्ज ) आर्या छ६ - भात्रि- छ हो रथवानी, २१ (पहेलिय) अडेसिानी अर्थात् गूढ આશયવાળી ગદ્યપદ્યમયી રચના खानी, २२ ( भागहिय) भागधी अर्थात् भगध देशनी लाषाभा अविता રચવાની, ર૩ (૪) સસ્કૃતથી જુદી ભાષામા માત્રિક છે દેમા કવિતા રચ વાની, અથવા લિગ દે દેશની ભાષામા રચિત કવિતાના વિજ્ઞાનની, २४ (गीइय) पूर्वार्धना प्रेम उत्तरार्धंसक्षय ३५ जीति छहमा जम्य रथवानी, २५ ( सिलोय) अनुष्टुप माहि छ हामी खेो रथवानी, २६ (हिर
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