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पीपषिणो-टीका सु. ६ प्रसघातिमा नरकोपपातयिपये प्रश्न .0
मूलम्--जीवे णं भंते । असंजए जाव एगंतसुत्ते उस्सण्ण-तस-पाण-घाई कालं किच्चा रइएसु उववजड , हंता । उववजइ ॥ सू०६॥
मूलम्-जीवेणंभंते । असंजए अविरए अ-प्पडिहय-प
टीका-अथोपपात पृष्ठति-'जीवे ण भते । ' इत्यादि । 'जीवे ण भते" जीव खलु हे भद त ! 'असनए जाव एगतमुत्ते' असयतो यावदेकान्तमुम-प्राग्न्यारयात , 'उस्सण्ण-वस-पाण-घाई' प्रायस्त्रस-प्राण-घाती-'उस्सप्ण' इतिप्रा य% बाहुल्येन प्रमप्राणान्स प्राणिनो हन्ति तच्छील , 'कालमासे ' मरणसमये, 'फाल किच्चा' कालं कृत्या-मरण विधाय, 'णेरइएमु उववजड' नेरयिकेपूत्पद्यते किम् ? इति प्रश्ने, उत्तरमाह भगवान्-'हता! उपवजड हन्त ! उपद्यते-नारकेपु जायते ॥ स०६ ॥
टीका-'जीवे ण भते' इत्यादि । 'जीवे ण भते । । जीव सलु हे 'जीवे ण भंते !' इत्यादि।
गौतम उपपात के विषय में पूछते हैं-(जीरे ण भते ! असजए जाव एगतमुत्ते उस्सण्ण-तसपाण-घाई) हे भदत ! वही पूर्वोक्त अमयम आदि अवस्था से लेकर सवेथा मिथ्यात्वरूपी गाढनिद्रा में प्रसुप्त मिथ्यादृष्टि जीव जो बहुलता से त्रसजीवों की हिंसा करने में लवलोन रहा करता है वह (कालमासे) मृत्यु के समय में (फाल किच्चा) मर कर रणरइएस) नारकियों में (उवत्रजइ) उत्पन्न होता है क्या ? उत्तर-(हता) हा गौतम ! (उववज्जइ) उत्पन्न होता है । सू ६ ॥
'जीवे ण भते त्याह
गौतम यातना विषयमा पूछ -(जीवेण भने । अमजए जाव एगत सुत्त उरसण्ण-तस-पाण-घाई) लात 6५२ ४९स मम यम माहि भर સ્થાથી લઈને સર્વથા મિથ્યાત્વ રૂપી ગાઢનિદ્રામાં સુતેલો મિશ્યાદષ્ટિ જીવ જે घम। उस वानी डिसा ४२पामा भन्यो २९ छ, त (कालमासे) भृत्युसमय (काल किच्चा) भशन (णेरइएस) ना२धीमामा (अवज्जइ) उत्पन्न याय छ ? उत्तर-(हता) है। गौतम । (उपवज्जइ) Gपन्न याय छे. (स )