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पोgraftणी टीका व ५७ अनगार धर्मनिरूपणम्.
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राइभोयण - वेरमणं । अयमाउसो । अणगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते एयस्स धम्मस्स सिखाए उबट्टिए णिग्गंथे वा णिग्गंथी वा विहरमाणे आणाए आराहए भवति ।
अर्थात् परिगृह्यते = समूर्च्छ स्वीक्रियत इति परिग्रह - धर्मापकरण भिन्न सर्वमित्यर्थस्तस्माद् विरमणम् ॥ ५ ॥ रात्रिभोजन - रात्रौ भोजन तस्माद् विरमणम् ॥ ६ ॥ ' अयमाउसो ? अणगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते ' अयमायुष्मन् ' अनगारसामयिक - अनगाराणा = साधूना समये=सिद्धान्ते, यद्वा आचारे भव, धर्म प्रज्ञप्त कथित । ' एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उबट्टिए ' एतस्य धर्मस्य शिक्षायाम् = आसेवने उपस्थित = उयुक्त, 'णिग्गथे वा ' निर्मन्थ = साधुर्वा 'णिग्गथी वा 'निर्ग्रन्थी वा उपस्थिता साध्वी वा - ' विहरमाणे ' विहरमाण = निचरन् 'आणाए आराहए भवइ' आज्ञाया = सर्वज्ञोपदेशस्य आराधको भवति । इत्थमनगारधर्म मुपदिश्य प्रत्यगार धर्ममुपदिशति, तदेवाह - ' अगारधम्म ' इत्यादि ।
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गया है । क्यों कि प्राणियों को इनमे 'ममेदभाव' होता है । इस परिग्रह से विरक्त होना परिग्रहविरमण महाव्रत है । रात्रि मे भोजन नहीं करना - इसका नाम रात्रिभोजन विरमण व्रत है । (अयमाउसो! अणगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते) हे आयुष्मन् ! सिद्धान्त में यह साधुओं का आचारजन्य धर्म प्रतिपादित किया गया है । (एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उबट्टिए) इस साधु के धर्म के आसेवन में उपस्थित (तत्पर) चाहे निर्ग्रन्थ-साधु हो, चाहे निर्ग्रन्थी - साध्वी हो, (विहरमाणे) जो इसे अपने आचरण में लाता है वह ( आणाए Care Her) प्रभु सर्वज के आजा का आराधक माना जाता है । इस प्रकार अनगारधर्म की प्ररूपणा कर के प्रभुने ' गृहस्थ का क्या धर्म है " इसकी प्ररूपणा इस प्रकार की
બધા ધન ધાન્ય આકિની, પરિગ્રહમા ગણના થાય છે કેમકે પ્રાણિઓને मेभा 'ममेदभाव' थाय छे से परिग्रहथी विरक्त थवु मे परिग्रह - विरभलु મહાવ્રત છે. રાત્રિમા ભોજન ન કરવુ તેનુ નામ રાત્રિભોજન વિરમણુ વ્રત છે (अमाउसो' अणगारसामाइए धम्मे पण्णत्ते) हे आयुष्यभान् ! भिद्धातभा साधुमोना आयार ४न्य मा धर्भतु प्रतियाहन उरेस छे (एयस्स धम्मस्स सिक्खाए उवट्टिए) साधुना या धर्मने भाणवामा उपस्थित - तत्पर, आहे ते निर्थन्य साधु होय ! आहे ते निर्मन्थी - साध्वी होय (विहरमाणे) ले जाने मायरशुभा सावे ते ( आणाए आराहए भवइ) प्रभु सर्वज्ञनी आज्ञाना आराध भनाथ छे આ પ્રકારે અનગાર ધર્મની પ્રરૂપણા કરીને પ્રભુએ ‘ગૃહસ્થના શુ ધર્મ છે ?” તેની