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औपपातिक
मूलम् -- तमेव धम्मं दुविहं आइक्खड, तं जहा-अगार'जह य' यथा च येन प्रकारेण 'परिहीण कम्मा' परिहीनकमाण परिहीयानिनिनानि कर्माणि येषा ते, सिद्धा' सिद्धालयमुपैति ' सिद्धालयमुपर्यात - लोकान्तक्षेत्ररक्षण स्थान प्राप्नुवन्ति तथा भगवान् परिकथयतीति पूर्वेणाचय ॥ सू० ५६ ॥
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टीका' तमेत्र' इत्यादि । तमेt धम्मं दुहि आक्खड़ तमेव = पूर्वोक्तमेव धर्मं द्विनिध=द्विप्रकारम्, आग्याति कथयति, 'तं जहा ' तद्यथा-' अगारधम्म अणगारधम्मं च ' अगारधर्मम्, अनगारधर्म च-अगार-गृह तान्स्थ्यादगारा गृहस्थी, गृहा दारा इत्यादिवत् यद्वा - अगारमस्येपामित्यर्थे 'अर्ग आदिम्योऽच्' इति मयाच्प्रयय, तेपा धर्म - वक्ष्यमाणस्वरूपस्तम्, तथा अनगारधर्म = न निद्यतेऽगारगृह येपा ते नगारा साधनस्तेषा धर्मस्त च आयाति । तन प्राधान्यात् प्रथमजय परिहीणकम्मा सिद्धा सिद्धालयमुर्वेति ) पुनकलत्रादिकों में आसक्तिरूप राग से उपार्जित ज्ञानावरणीय आदिक कर्मों का पापमय फल जैसे होता है और कर्मों को नष्ट कर जीन सिद्धावस्थापन्न हो सिद्धालय में जैसे पहुँचते हे यह सब भी प्रभु ने अपनी देशना में स्पष्ट किया || मू ५६ ॥
'तमेव धम्म दुविह आइक्खर' इत्यादि
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प्रभु ने (तमेन धम्म दुविह आक्रखइ) इस धर्म को दो प्रकार से कहा है । ('अगारधम्म अणगारधम्म च) १ गृहस्थ का धर्म और दूसरा अनगार - मुनि का धर्म 1
(१) ‘अगार' नाम घर का है । परन्तु इस पद से यहाँ उनमे रहने वाले गृहस्थों का ग्रहण हुआ है, अथवा “अर्श आदिभ्योऽच्” इस सूत्र से अस्त्यर्थ मे अच् प्रत्यय करने से भी उनमे रहने वाले गृहस्थों का ग्रहण हो जाता है ।
જન કરેલા જ્ઞાનાવરણીય આદિક કમેન પાપમય કુલ જેમ થાય છે અને કર્મોના નાશ કરી જીવ સિદ્ધ-અવસ્થા પ્રાપ્ત કરી સિદ્ધાલય (મુક્તિ સ્થાનમા જેમ પહેાચે છે તે બધુ પણ પ્રભુએ પોતાની દેશનામાં સ્પષ્ટ કર્યું ( ૫૬)
" तमेव धम्म दुविह आइक्सई" त्यिाहि
( तमेव धम्म दुविह आइक्खर ) या धर्म में प्रहारनो उद्यो छे ( ' अगारधम्म अणगारधम्म च ) १-गृहभ्थना धर्म भने जील मनगार-भुनिना (૧) અગાર એટલે ઘ પરંતુ આ પદથી અહી તેમા રહેવાવાળા शृङभ्थे। भेवे। अर्थ थड क्ष्यों छे, अथवा " अर्श आदिभ्योऽच्" या सूत्रथी ‘અસ્તિ’ અર્થોમાં અચ્ પ્રત્યય લગાડવાથી પણ તેમા રહેવાવાળા ગૃહસ્થા–એવે અથ થાય છે